Friday, August 22, 2025
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तेल पर चलेगा अमेरिका का डंडा या भारत की कूटनीति?


स्वराज इंडिया : न्यूज ब्यूरो / नई दिल्ली

19 जुलाई 2025 रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे साल में पहुंच गया है और इसके साए में अब वैश्विक राजनीति, व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। इस जंग ने सिर्फ यूरोप नहीं, बल्कि एशिया और अमेरिका को भी अपने घेरे में ले लिया है। ताज़ा हालात में अमेरिका की ओर से ‘सैंक्शनिंग रशिया एक्ट ऑफ 2025’ नाम का नया बिल सामने आया है, जिसने भारत समेत कई देशों के लिए कूटनीतिक संकट खड़ा कर दिया है।

इस बिल के तहत यदि कोई देश रूस से तेल, गैस या यूरेनियम खरीदता है, तो अमेरिका उसे 500% तक का सेकंडरी टैरिफ यानी आयात शुल्क लगा सकता है। मतलब, भारत जैसे देश जो अभी भी रूस से सस्ते दामों पर तेल खरीद रहे हैं, उन्हें अपने सामान को अमेरिका में बेचना महंगा पड़ सकता है।

भारत की स्थिति और चुनौती

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। 2021 तक भारत रूस से केवल 1% तेल आयात करता था, लेकिन युद्ध के बाद रूस से मिलने वाले डिस्काउंटेड ऑयल ने भारत की ऊर्जा नीति को बदल दिया। आज भारत लगभग 35% कच्चा तेल रूस से ले रहा है। इससे एक ओर पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रहीं, दूसरी ओर विदेशी मुद्रा भंडार पर भी राहत रही।
लेकिन अब अमेरिका दो टूक कह रहा है – या तो रूस से दूरी बनाओ, या फिर भारी आर्थिक सज़ा भुगतो। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नाटो के महासचिव मार्क रुटे ने भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे देशों को खुलेआम चेताया है कि अगर वे पुतिन को युद्ध रोकने के लिए मजबूर नहीं करते, तो उन पर आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक होगी।
भारत की प्रतिक्रिया भी साफ है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने अमेरिका की चेतावनी को ठुकराते हुए कहा है कि भारत की ऊर्जा नीति दिल्ली में बनती है, वाशिंगटन में नहीं। पुरी ने यहां तक कहा कि अगर भारत रूस से सस्ता तेल नहीं खरीदता तो आज पूरी दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें 120-130 डॉलर प्रति बैरल हो जातीं, जिससे यूरोप और अमेरिका की जनता भी कराह उठती।

सस्ती ऊर्जा बनाम अमेरिकी बाजार

भारत के सामने दोहरी चुनौती है:

1. सस्ती ऊर्जा की ज़रूरत, जो रूस पूरा कर रहा है।


2. अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार, जहां भारत फार्मा, टेक्सटाइल, आईटी और ऑटो सेक्टर में भारी कमाई करता है।



अगर अमेरिका 500% टैक्स लगाता है, तो भारत का सामान वहां बिकना मुश्किल हो जाएगा। इसका असर निर्यात, रोज़गार और अर्थव्यवस्था तीनों पर पड़ेगा।

भारत की कूटनीति – संतुलन की कोशिश

भारत फिलहाल सधे कदमों से आगे बढ़ रहा है। सऊदी अरब, यूएई और ब्राजील जैसे देशों से बैकअप डील्स की जा रही हैं ताकि आपात स्थिति में रूस की सप्लाई का विकल्प रहे। लेकिन इन देशों का तेल रूस जितना सस्ता नहीं है, इसलिए आम आदमी पर बोझ बढ़ने का खतरा बना रहेगा।

विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत पूरी तरह रूस से हाथ नहीं खींचेगा, बल्कि आंशिक संतुलन का रास्ता अपना सकता है। अमेरिका को यह दिखाया जा सकता है कि भारत ने कुछ बदलाव किए हैं, लेकिन वास्तविक तौर पर स्वतंत्र रणनीति को ही आगे बढ़ाया जाएगा।

रूस भी तैयार है गेम खेलने को

रूस जानता है कि भारत और चीन जैसे साझेदार उसे पूरी तरह अकेला नहीं छोड़ सकते। इसलिए वह अब एशिया को केंद्र बनाकर तेल, गैस, कोयला और खाद्यान्न के नए सौदे कर रहा है। पुतिन ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वो युद्ध तभी रोकेंगे जब पश्चिम उनकी शर्तें मानेगा।
अब सवाल यह है कि क्या ट्रंप वाकई भारत जैसे देशों पर टैरिफ थोपेंगे या सिर्फ सौदेबाज़ी के लिए दबाव बना रहे हैं? संकेत यही हैं कि अमेरिका इस धमकी के ज़रिये बातचीत की टेबल मजबूत करना चाहता है।

  भारत की अग्निपरीक्षा

इस पूरी स्थिति में भारत के लिए सबसे अहम सवाल है – क्या वह ऊर्जा सुरक्षा की कीमत पर व्यापारिक रिश्ते दांव पर लगाएगा?
जवाब शायद यही है कि भारत अपनी जनता की भलाई को प्राथमिकता देगा। मोदी सरकार की नीति फिलहाल यही संकेत दे रही है कि भारत ना तो किसी का पिछलग्गू बनेगा, ना ही किसी के डर से अपनी अर्थव्यवस्था को संकट में डालेगा।

जंग अब मिसाइलों की नहीं, तेल की है

इस बार जंग ज़मीन पर नहीं, बाज़ार और बंदरगाहों पर हो रही है। भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं के फैसले अब वैश्विक शक्ति संतुलन को तय करेंगे। यह विश्लेषण खासतौर पर उन पाठकों के लिए जो भू-राजनीति, ऊर्जा कूटनीति और भारत-अमेरिका संबंधों में दिलचस्पी रखते हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर गहरी पकड़ रखते हैं।

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