Wednesday, April 2, 2025
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भारत में क्या वाकई था माहिष्मती साम्राज्य !

फ़िल्म “बाहुबली” रिलीज होने के बाद महिष्मति नाम से कौन परिचित नही है लेकिन वाकई यह एक साम्राज्य हुआ करता था इस बात की जानकारी कम लोगो को है। आईटी के साथ-साथ समसामयिकी एवं सामान्य अध्ययन जिसमे इतिहास भी आता है मेरा सब्जेक्ट रहा है और साल २०११ में अखिल भारतीय सेवा एवं राज्य सेवा के अधिकारियों को प्रशिक्षण देने वाली सरकार की “प्रशासनिक अकादमी” जॉइन करने के बाद से ज्ञान और ज्यादा निखर गया। तो अपने ज्ञानानुसार आज बात करते हैं महिष्मति साम्राज्य की।

दरअसल पौराणिक १६ महाजनपदों में से एक हुआ करता था चेदी। यह शुक्तिमती नदी के पास का देश था, जिसमें तब बुंदेलखंड का दक्षिणी भाग और जबलपुर का उत्तरी भाग सम्मिलित था। बौद्ध ग्रंथों में जिन सोलह महाजनपदों का उल्लेख है उनमें यह भी था। कलिचुरि वंश ने भी यहाँ राज्य किया। कहा जाता है कि किसी समय शिशुपाल यहाँ का प्रसिद्ध राजा था। उसका विवाह रुक्मिणी से होने वाला था कि श्रीकृष्ण ने रूक्मणी का हरण कर दिया इसके बाद ही जब युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण को पहला स्थान दिया तो शिशुपाल ने उनकी घोर निंदा की। इस पर श्रीकृष्ण ने उसका वध कर डाला। लोगो द्वारा मध्य प्रदेश का ग्वालियर क्षेत्र में वर्तमान चंदेरी क़स्बा ही प्राचीन काल के चेदि राज्य की राजधानी बताया जाता है।

भारत के इन सोलह महाजनपदों का उल्लेख ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भी पहले का है। ये महाजनपद थे-
गांधार : राजधानी तक्षशिला। पाकिस्तान स्थित पश्चिमोत्तर क्षेत्र रावलपिंडी से १८ मील उत्तर की ओर और इस्लामाबाद से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र ही गांधार राज्य के अंतर्गत आता था। गंधार का अर्ध होता है सुगंध। गांधारी गांधार देश के ‘सुबल’ नामक राजा की कन्या थीं। क्योंकि वह गांधार की राजकुमारी थीं, इसीलिए उनका नाम गांधारी पड़ा। पुराणों (मत्स्य ४८।६; वायु ९९,९) में गंधार नरेशों को द्रुहु का वंशज बताया गया है। ययाति के पांच पुत्रों में से एक द्रुहु था। ययाति के प्रमुख ५ पुत्र थे- १.पुरु, २.यदु, ३.तुर्वस, ४.अनु और ६.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है।

गांधार महाजनपद के प्रमुख नगर थे- आज के पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र उस काल में भारत का गंधार प्रदेश था। आधुनिक कंदहार इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था। अंगुत्तरनिकाय के अनुसार बुद्ध तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि। मौर्य साम्राज्य में संपूर्ण गंधार देश सम्मिलित था। पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व ६०० ईसा पूर्व से ११वीं सदी तक रहा।

कंबोज : आधुनिक अफगानिस्तान; राजधानी राजापुर। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार कंबोज जनपद सम्राट अशोक महान का सीमावर्ती प्रांत था। कंबोज देश का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। इसके दो प्रमुख नगर थे राजपुर और नंदीपुर। राजपुर को आजकल राजौरी कहा जाता है। पाकिस्तान का हजारा जिला भी कंबोज के अंतर्गत ही था। कंबोज के पास ही गांधार जनपद था। कंबोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण-पश्चिम के पुंछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार कंबोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है। आ‍धुनिक मान्यता के अनुसार कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा कंबोज था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी हैं। बदख्शां अफगानिस्तान में हिन्दूकुश पर्वत का निकटवर्ती प्रदेश है और पामीर का पठार हिन्दूकुश और हिमालय की पहाड़ियों के बीच का स्थान है।

कनिंघम ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ ‘एंशेंट जियोग्राफी ऑव इंडिया’ में राजपुर का अभिज्ञान दक्षिण-पश्चिम कश्मीर के राजौरी नामक नगर (जिला पुंछ, कश्मीर) के साथ किया है। यहां नंदीनगर नामक एक और प्रसिद्ध नगर था। सिकंदर के आक्रमण के समय कंबोज प्रदेश की सीमा के अंतर्गत उरशा (पाकिस्तानी जिला हजारा) और अभिसार (कश्मीर का जिला पुंछ) नामक छोटे-छोटे राज्य बसे हुए थे।

जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल, कंधार, बल्ख, वाखान, बगराम, पामीर, बदख्शां, पेशावर, स्वात, चारसद्दा आदि हैं, उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुंभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था।

कुरु : महाभारत काल के पूर्व दक्षिण कुरुओं का राज्य हिन्दुकुश के आगे से कश्मीर तक था। बाद में पांचालों पर आक्रमण करके उन्होंने अपना क्षेत्र विस्तार किया। महाभारत काल में कुरुओं का क्षेत्र था मेरठ और थानेश्वर के आसपास था क्षेत्र और राजधानी थी पहले ‍हस्तिनापुर और बाद में इन्द्रप्रस्थ। बौद्ध कल में यह संपूर्ण क्षेत्र कुषाणों के अधीन हो चला था।

पंचाल : बरेली, बदायूं और फर्रूखाबाद; राजधानी अहिच्छत्र तथा काम्पिल्य। इसके नाम का सर्वप्रथम उल्लेख यजुर्वेद की तैत्तरीय संहिता में ‘कंपिला’ रूप में मिलता है। पांडवों की पत्नी, द्रौपदी को पंचाल की राजकुमारी होने के कारण पांचाली भी कहा गया। कनिंघम के अनुसार वर्तमान रुहेलखंड उत्तर पंचाल और दोआबा दक्षिण पंचाल था। पांचाल को पांच कुल के लोगों ने मिलकर बसाया था। यथा किवि, केशी, सृंजय, तुर्वसस और सोमक। पंचालों और कुरु जनपदों में परस्पर लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे।

कोशल : अवध; राजधानी साकेत और श्रावस्ती।
शूरसेन : मथुरा के आसपास का क्षेत्र; राजधानी मथुरा।
काशी : वाराणसी; राजधानी वाराणसी।
मगध : दक्षिण बिहार, राजधानी गिरिव्रज (आधुनिक राजगृह)।
वत्स : प्रयाग (इलाहाबाद) और उसके आसपास; राजधानी कौशांबी।
अंग : भागलपुर; राजधानी चंपा।
मत्स्य : जयपुर; राजधानी विराट नगर।
वज्जि : जिला दरभंगा और मुजफ्फरपुर; राजधानी मिथिला, जनकपुरी और वैशाली।
मल्ल : ज़िला देवरिया; राजधानी कुशीनगर और पावा (आधुनिक पडरौना)
चेदि : बुंदेलखंड; राजधानी शुक्तिमती (वर्तमान बांदा के पास)।
अवंति : मालवा; राजधानी उज्जयिनी।
अश्मक : गोदावरी घाटी; राजधानी पांडन्य।

इनमे बात करते है चेदि जनपद की राजधानी ‘माहिष्मति की, जो नर्मदा के तट पर स्थित थी, इसका अभिज्ञान ज़िला इंदौर, मध्य प्रदेश में स्थित ‘महेश्वर’ नामक स्थान से किया गया है, जो पश्चिम रेलवे के अजमेर-खंडवा मार्ग पर बड़वाहा स्टेशन से ३५ मील दूर है। महाभारत के समय यहाँ राजा नील का राज्य था, जिसे सहदेव ने युद्ध में परास्त किया था-

‘ततो रत्नान्युपादाय पुरीं माहिष्मतीं ययौ। तत्र नीलेन राज्ञा स चक्रे युद्धं नरर्षभ:’

राजा नील महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ता हुआ मारा गया था। बौद्ध साहित्य में माहिष्मति को दक्षिण अवंति जनपद का मुख्य नगर बताया गया है। बुद्ध काल में यह नगरी समृद्धिशाली थी तथा व्यापारिक केंद्र के रूप में विख्यात थी। तत्पश्चात उज्जयिनी की प्रतिष्ठा बढ़ने के साथ-साथ इस नगरी का गौरव कम होता गया। फिर भी गुप्त काल में ५वीं शती तक माहिष्मति का बराबर उल्लेख मिलता है। कालिदास ने ‘रघुवंश’ में इंदुमती के स्वयंवर के प्रसंग में नर्मदा तट पर स्थित माहिष्मति का वर्णन किया है और यहाँ के राजा का नाम ‘प्रतीप’ बताया है-

‘अस्यांकलक्ष्मीभवदीर्घबाहो माहिष्मतीवप्रनितंबकांचीम् प्रासाद-जालैर्जलवेणि रम्यां रेवा यदि प्रेक्षितुमस्तिकाम:।’

इस उल्लेख में माहिष्मती नगरी के परकोटे के नीचे कांची या मेखला की भाति सुशोभित नर्मदा का सुंदर वर्णन है।

माहिष्मति नरेश को कालिदास ने अनूपराज भी कहा है,जिससे ज्ञात होता है कि कालिदास के समय में माहिष्मति का प्रदेश नर्मदा नदी के तट के निकट होने के कारण अनूप कहलाता था। पौराणिक कथाओं में माहिष्मति को हैहय वंशीय कार्तवीर्य अर्जुन अथवा सहस्त्रबाहु की राजधानी बताया गया है। किंवदंती है कि इसने अपनी सहस्त्र भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया था।

युवानच्वांग के अनुसार-

चीनी यात्री युवानच्वांग, ६४० ई. के लगभग इस स्थान पर आया था। उसके लेख के अनुसार उस समय माहिष्मति में एक ब्राह्मण राजा राज्य करता था। अनुश्रुति है कि शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करने वाले मंडन मिश्र तथा उनकी पत्नी भारती माहिष्मति के ही निवासी थे। कहा जाता है कि महेश्वर के निकट ‘मंडलेश्वर’ नामक बस्ती मंडन मिश्र के नाम पर ही विख्यात है। माहिष्मति में मंडन मिश्र के समय संस्कृत विद्या का अभूतपूर्व केंद्र था।

महेश्वर में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने नर्मदा के उत्तरी तट पर अनेक घाट बनवाए थे, जो आज भी वर्तमान हैं। यह धर्मप्राणरानी १७६७ के पश्चात इंदौर छोड़कर प्राय: इसी पवित्र स्थल पर रहने लगी थीं। नर्मदा के तट पर अहिल्याबाई तथा होल्कर वंश के नरेशों की कई छतरियां बनी हैं। ये वास्तुकला की दृष्टि से प्राचीन हिन्दू मंदिरों के स्थापत्य की अनुकृति हैं। भूतपूर्व इंदौर रियासत की आद्य राजधानी यहीं थी। एक पौराणिक अनुश्रुति में कहा गया है कि माहिष्मति का बसाने वाला ‘महिष्मानस’ नामक चंद्रवंशी नरेश था। सहस्त्रबाहु इन्हीं के वंश में हुआ था। महेश्वरी नामक नदी जो माहिष्मति अथवा महिष्मान के नाम पर प्रसिद्ध है, महेश्वर से कुछ ही दूर पर नर्मदा में मिलती है। हरिवंश पुराण की टीका में नीलकंठ ने माहिष्मति की स्थिति विंध्य और ऋक्ष पर्वतों के बीच में विंध्य के उत्तर में और ऋक्ष के दक्षिण में बताई है।

(प्रस्तुत पोस्ट हेतु कई सन्दर्भ ग्रंथो का यथास्थान उपयोग किया गया है।)

निखिलेश मिश्रा, पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी अधिकारी

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