
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो, कानपुर। होली का त्योहार रंगों और उमंग का प्रतीक है, जिसे पूरे जनपद कानपुर देहात में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस त्योहार की खासियत केवल रंग-गुलाल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके पारंपरिक फाग गीत भी होली के माहौल को जीवंत बना देते हैं। होली के त्योहार पर कई तरह के गीत सुनने को मिलते हैं, लेकिन पारंपरिक फाग गीतों की अपनी खास अहमियत होती है। फाग गीत होली का पर्याय माने जाते हैं और बिना इनके होली का उल्लास अधूरा सा लगता है। फाग गीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि इनमें भारतीय सेना संस्कृति, सामाजिक सौहार्द्र और परंपराओं की झलक देखने को मिलती है।
फाग गीतों का महत्व…….
होली खिलखिलाकर और खुलकर मनाने का पर्व है। फाग गीतों में वही उत्साह और उमंग देखने को मिलता है। ब्रज क्षेत्र में खासतौर पर गाए जाते हैं। इन गीतों में राधा-कृष्ण की प्रेम लीलाएं, शिव-पार्वती की कथाएं और सामाजिक घटनाओं का चित्रण किया जाता है।
फाग गीतों में उल्लास, व्यंग्य और हास्य का अद्भुत मेल होता है, जिसे “जोगीरा सररर…” के साथ गाया जाता है। जोगीरा का यह अंदाज फाग गीतों की खास पहचान है।

फाग गीतों की क्षेत्रीय विविधता…
होली का त्योहार विभिन्न रूपों में मनाया जाता है और इसी तरह फाग गीत भी हर क्षेत्र में अपने अलग रंग बिखेरते हैं।
‘फाल्गुन के महीना रसीले घर नहीं आए छैला छबीले…’
आज बिरज में होली रे रसिया
‘खेले मसाने में होरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी..’
सबसे प्रसिद्ध फाग गीत जोगीरा सररर…
काहे खातिर राजा रूसे काहे खातिर रानी।
काहे खातिर बकुला रूसे कइलें ढबरी पानी॥
जोगीरा सररर…. आज बिरज में होली रे रसिया… उड़त गुलाल लाल भए बादर,
केसर रंग में बोरी रे रसिया। बाजत ताल मृदंग झांझ ढप, और मजीरन की जोरी के रसिया।फाग गायन कर रहे संजीवन यादव, दिनेश पांडे, अश्वनी शुक्ल, मान सिंह यादव,फाग गीत न केवल होली के रंग को और चटक बनाते हैं, बल्कि ये हमारी सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक हैं। आधुनिक संगीत के बढ़ते प्रभाव के बावजूद फाग गीतों का महत्व बरकरार है। इन पारंपरिक गीतों को संजोना और अगली पीढ़ी को सिखाना हमारी जिम्मेदारी है ताकि होली का यह रंगीला पर्व अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखे मोंटी द्विवेदी, ब्यास जी, गोविंद मिश्र, अखिलेश, आनंद, अभय पांडेय, सुमित, बऊअन आदि मौजूद रहे।