Friday, August 22, 2025
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पनकी मंदिर के सेवादारों का अपना अलग ही अजब गजब अर्थतंत्र


मुख्य संवाददाता / स्वराज इंडिया :कानपुर

  मशहूर पनकी पंचमुखी हनुमान मंदिर में वैसे तो हर रोज भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन मंगलवार और शनिवार को तो मानो श्रद्धालुओं का तांता ही लग जाता है। भीड़ का आलम यह होता है कि अक्सर लाइन बृहद मंदिर परिसर की सीमाओं को लांघकर बाहर सड़क तक पहुंच जाती है। इसका सबसे बड़ा कारण मंदिर में सेवादारों की कमी बताई जाती है। मंदिर सूत्रों का कहना है दोनों महंतों को मिलाकर मात्र 5-6 लोग ही गर्भ ग्रह में सेवा के लिए अधिकृत हैं, जिस कारण उमड़ रही भक्तों की भीड़ को सुलभ दर्शन करा पाना संभव नहीं हो पाता। वहीं बहुत से श्रद्धालुओं का आरोप है जब से 200 रुपए में वीआईपी दर्शन की व्यवस्था शुरू हुई है, तब से मंदिर में आम श्रद्धालुओं के लिए बाबा के दर्शन करना मुश्किल होता जा रहा है। मंदिर के बगल के आंगन में बेतरतीब पड़ी गंदगी बता रही है कि जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी का किस प्रकार पालन कर रहे हैं! स्वयं के अहम् के शमन के लिए वार्षिक परंपरा रोक देने वाले, मांग न माने जाने पर आम लोगों से बाजार बंद करने का आवाहन करने वाले, पनकी मंदिर महंत को आम लोगों की यह दुश्वारियां क्यों नहीं दिखतीं, यह एक बड़ा प्रश्न है, जिसका उत्तर भक्तों को पनकी के दोनों महंतों को ही देना होगा।

सशुल्क वीआईपी दर्शन व्यवस्था से फैली अव्यवस्था

लंबे समय से लगातार आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि लाइन पहले भी लगती थी‌ लेकिन जब से 200 रुपए में वीआईपी दर्शन की व्यवस्था लागू हुई है, तब से लाइन की लंबाई लगातार बढ़ती जा रही है। स्वराज इंडिया ने मंदिर में भक्तों की लग रही लंबी लाइन के संबंध में जब जानकारी जुटाई तो मंदिर का एक अलग ही प्रबंध तंत्र और एक अनूठा अर्थ प्रबंधन सामने आया! जिसे हम अलग बिंदु पर आपके समक्ष रखेंगे। मंदिर में लग रही लंबी लाइन मात्र उन श्रद्धालुओं तक सीमित नहीं है जो 200 रुपए की पर्ची नहीं कटा सकते बल्कि लाइन में उन्हें भी लगना पड़ता है जो 200 रुपए की पर्ची कटाते हैं। अंतर बस इतना है कि पर्ची कटाने वालों को 20-25 लोगों की लाइन में लगना पड़ता है और साधारण श्रद्धालुओं को  मंदिर के बाहर सड़क तक लाइन में खड़ा होना पड़ सकता है।

सेवादारों और कार्यकर्ताओं का अलग वीवीआईपी दर्शन सिस्टम

जानकारों का कहना है कि मंदिर में दर्शन की उपरोक्त लिखित दो ही व्यवस्थाएं नहीं हैं। साधारण और सशुल्क वीआईपी दर्शन के अतिरिक्त भी सेवादारों और सेवा में लगे कार्यकर्ताओं ने अपनी एक अलग वीवीआईपी दर्शन व्यवस्था भी बना रखी है। सभी सेवादार और मंदिर व्यवस्था में लगे लोगों के पास भक्तों का अपना एक अलग समूह होता है, जो इन सेवादारों और कार्यकर्ताओं के माध्यम से बिना 200 रुपए की रसीद कटाए वीआईपी दर्शनार्थियों से पहले दर्शन भी प्राप्त कर लेता है। सूत्रों का कहना है इन वीवीआईपी दर्शनों में भक्त द्वारा प्रसाद के साथ चढ़ाया गया द्रव्य ,धन आदि सेवादार का हो जाता है और सूत्र इसका वाजिब कारण भी बताते हैं।

सभी सेवादार अवैतनिक

मंदिर के सेवादार हों या अन्य व्यवस्थाओं से जुड़े लोग मंदिर प्रबंधन की ओर से किसी को किसी भी प्रकार का वेतन या फिर अन्य मद में कोई धनराशि नहीं दी जाती है। जो सेवादार जिस समय सेवा दे रहा है उस समय भक्त द्वारा प्रसाद के साथ डलिया में जो भी रुपए रखे जाते हैं, वह उस सेवादार का हिस्सा होता है। रसीद द्वारा व दान पात्र में पहुंचा धन सीधे-सीधे महंतों के नियंत्रण में होता है। मंदिर में चढ़ने वाली सभी अन्य वस्तुएं भी महंतद्वय के अधीन होती हैं।

सफाई कर्मी भी भगवान भरोसे



मंदिर प्रांगण में सुबह और रात को सफाई की जिम्मेदारी उठाने वाले भी वेतन विहीन कर्मचारी हैं। दरअसल लाख जतन करने के बाद भी फूल और अन्य पूजन सामग्री में कुछ रूपए पैसे पहुंच ही जाते हैं, सफाई करने वाले इसे अपना पारिश्रमिक मानें या भगवान द्वारा दिया गया  प्रतिफल, यह उनके ऊपर है और कितना मिला यह उनकी तकदीर पर है।



एकमात्र वेतन भोगी कर्मचारी है चौकीदार

सूत्रों का कहना है मंदिर प्रबंधन की ओर से मात्र एक व्यक्ति को वेतन दिया जाता है और वह व्यक्ति है मंदिर का चौकीदार। बात अविश्वसनीय है लेकिन सूत्रों की बात यदि सही है तो इतने बड़े पनकी मंदिर की व्यवस्था में मात्र एक चौकीदार ही ऐसा है जिसे वेतन मिलता है।


पनकी मंदिर जहां आम दिनों में हजारों भक्त दर्शन करने आते हैं, उनकी जितनी मंदिर के प्रति आस्था है और महंतों के प्रति उनके मन में जो श्रद्धा भाव है, उसके सापेक्ष भक्तों की सुविधाओं के प्रयास नगण्य नजर आते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि महंतों द्वारा भक्तों की सुविधाओं पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता। शास्त्रों में अनेक वर्णन, प्रसंग मिलते हैं जो हम संसारियों को बताते हैं कि भगवान के लिए उनके भक्त सबसे प्रिय हैं तो अपने आराध्य के दर्शनों के अभिलाषी भक्तों का दर्द इन महंतों को क्यों नहीं दिखता? मंदिर में सेवादारों की संख्या क्यों नहीं बढ़ाई जाती? मंदिर परिसर को साफ सुथरा रखने के प्रबंध क्यों नहीं किए जाते? अपने मान अपमान के लिए आम लोगों से दुकान बंद करने का आवाहन करने वाले महंत पनकी मंदिर में आम लोगों की तकलीफों को क्यों नहीं महसूस कर पाते? यह प्रश्न बहुत बड़े हैं और यदि मंदिर प्रबंधन इन प्रश्नों के उत्तर खोजने के प्रति गंभीर नहीं है तो यह जिम्मेदारी जिला प्रशासन पर आती है कि वह मंदिर की व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरुस्त  कर भक्तों को सर्व सुलभ दर्शन उपलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करे।

बयान

देश के सभी मंदिरों में यह व्यवस्था है। पनकी मंदिर में शुल्क सबसे कम है। अधिकारियों, पत्रकारों, प्रतिष्ठित लोगों और दिव्यांग जनों को मुफ्त में वीआईपी दर्शन कराते हैं।

महंत कृष्णदास दर्शन करने के बाद भी फूल और अन्य पूजन सामग्री में कुछ रूपए पैसे पहुंच ही जाते हैं, सफाई करने वाले इसे अपना पारिश्रमिक मानें या भगवान द्वारा दिया गया  प्रतिफल, यह उनके ऊपर है और कितना मिला यह उनकी तकदीर पर है।

महंत कृष्णदास, पनकी मंदिर

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