
शिवली कस्बे के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में गंदगी, खराब वाटर कूलर और प्रसव केंद्र के बाहर फैली थूक की परतें प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की जमीनी सच्चाई बयां करती हुईं।
शिवांक अग्निहोत्री की रिपोर्ट:

प्रसव केंद्र बना गंदगी का अड्डा-कानपुर देहात के शिवली कस्बे में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जब दैनिक स्वराज इंडिया की टीम ने मौके पर पहुंचकर पड़ताल की, तो वहां के हालात ने सभी को चौंका दिया। स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ माने जाने वाले इस केंद्र की दशा देखकर साफ जाहिर होता है कि न तो स्थानीय प्रशासन की नजर इस पर है और न ही स्वच्छता को लेकर कोई गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। सबसे ज्यादा हैरानीजनक स्थिति अस्पताल परिसर के उस प्रसव केंद्र की थी, जहां पर महिलाओं की डिलीवरी जैसी नाजुक प्रक्रियाएं होती हैं। प्रसव केंद्र के ठीक बाहर की दीवारें और फर्श गुटखे और पान की पीकों से लाल पड़ी थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यह कोई सार्वजनिक शौचालय का पिछला हिस्सा हो, न कि एक अस्पताल का हिस्सा।गंदगी इतनी ज्यादा थी कि वहां खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था, लेकिन स्वास्थ्यकर्मियों और प्रशासन ने इसे जैसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा मान लिया हो। स्वच्छ भारत अभियान के तहत जिस साफ-सफाई और जागरूकता की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार करते हैं, वह यहां नदारद नजर आई। यह नजारा न केवल मरीजों और उनके तीमारदारों के लिए बेहद अस्वास्थ्यकर और अपमानजनक था, बल्कि देशभर में चलाए जा रहे स्वास्थ्य और स्वच्छता अभियानों पर भी एक करारी चोट थी। सवाल यह उठता है कि जब अस्पताल जैसा संवेदनशील स्थान ही स्वच्छता के बुनियादी मापदंडों पर खरा नहीं उतर रहा, तो बाकी स्थानों की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। ऐसे में यह मामला सिर्फ स्थानीय प्रशासन की लापरवाही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं की जमीनी हकीकत को उजागर करता है।

ठप पड़ा वाटर कूलर, मरीज बेहाल-गर्मी के इस भीषण मौसम में जब तापमान लगातार ऊंचाई पर है, ऐसे समय में अस्पताल में आने वाले मरीजों और उनके साथ आए परिजनों के लिए ठंडा और साफ पीने का पानी किसी जीवनरक्षक सुविधा से कम नहीं होता। खासतौर पर बुजुर्ग, महिलाएं और छोटे बच्चे जो इलाज के इंतजार में कई-कई घंटे बैठते हैं, उन्हें समय-समय पर पानी की आवश्यकता होती है। लेकिन शिवली के इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लगाए गए वाटर कूलर की हालत देखकर यह समझना मुश्किल नहीं था कि यहां मरीजों की बुनियादी जरूरतों को भी नजरअंदाज किया जा रहा है। वाटर कूलर पूरी तरह से बंद और निष्क्रिय अवस्था में पाया गया, जिसके चलते मरीजों को या तो अपने साथ पानी लाना पड़ रहा था या अस्पताल परिसर से बाहर जाकर व्यवस्था करनी पड़ रही थी।जब स्वराज इंडिया की टीम ने इस मुद्दे पर अस्पताल के कर्मचारियों से बात की, तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि वाटर कूलर काफी समय से खराब पड़ा है और अब तक उसकी मरम्मत के लिए कोई पहल नहीं की गई है। यह स्थिति न सिर्फ प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साफ करती है कि अस्पताल प्रबंधन मरीजों की मूलभूत आवश्यकताओं के प्रति कितनी असंवेदनशील हो चुका है। यह विडंबना ही है कि एक ओर केंद्र सरकार “हर घर जल”, “आयुष्मान भारत” और “स्वास्थ्य आपके द्वार” जैसी योजनाओं के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर जमीनी स्तर पर इतनी बुनियादी सुविधा — पीने के पानी की — तक सुनिश्चित नहीं हो पा रही है। ऐसी लापरवाह व्यवस्था समूचे स्वास्थ्य तंत्र की छवि को प्रभावित करती है और सरकारी प्रयासों को जनता की नजरों में अविश्वसनीय बना देती है।

स्वच्छ भारत अभियान की जमीनी हकीकत-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान देशभर में सफाई और स्वास्थ्यमूलक वातावरण को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। लेकिन शिवली का यह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दिखाता है कि यह अभियान सिर्फ कागजों तक सीमित रह गया है। अस्पताल जैसे संवेदनशील स्थान पर गंदगी, खराब सुविधाएं और लापरवाही प्रशासन की गंभीर विफलता को दर्शाती है। जरूरत है कि स्थानीय स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन इस पर तुरंत संज्ञान लेकर कार्रवाई करें, ताकि “स्वच्छ भारत” का सपना सच्चाई बन सके।
