
अल्प मानदेय में कैसे परिवार चलाएं शिक्षामित्र ?
बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह द्वारा विधानसभा में दिए गए बयान ने शिक्षामित्रों में बढ़ी नाराजगी
शिक्षा मित्र वेलफेयर एसोसिएशन के वरिष्ठ नेता श्याम सिंह भदौरिया ने कहा कि मानदेय में किसी भी प्रकार की वृद्धि न करने से शिक्षामित्रों की आर्थिक स्थिति और भी बदतर
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
कानपुर।
उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों की दशा पर चर्चा करना नितांत आवश्यक है। वर्तमान समय में बेसिक शिक्षा मंत्री द्वारा विधानसभा में दिए गए बयान ने शिक्षामित्रों के समक्ष कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह बयान शिक्षामित्रों के मानदेय से संबंधित है, जिसे लेकर प्रदेश भर में शिक्षामित्रों में गहरी नाराजगी है। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ इस बयान की कड़ी निंदा करता है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से अपनी मांगों के निराकरण की अपील करता है।
कानपुर देहात निवासी शिक्षा मित्र वेलफेयर एसोसिएशन के वरिष्ठ नेता श्याम सिंह भदौरिया ने बताया कि शिक्षामित्रों का मानदेय 2017 में 10,000 रुपये कर दिया गया था, जो उस समय की महंगाई और परिस्थितियों के अनुसार भी पर्याप्त नहीं था। आज, जब महंगाई लगातार बढ़ रही है, यह मानदेय शिक्षामित्रों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में असफल हो रहा है। सरकार द्वारा मानदेय में किसी भी प्रकार की वृद्धि न करने से शिक्षामित्रों की आर्थिक स्थिति और भी बदतर हो चुकी है। पिछले वर्षों में 12,000 से अधिक शिक्षामित्र साथी, समायोजन निरस्त होने के बाद, आर्थिक तंगी और मानसिक दबाव के चलते आत्महत्या कर चुके हैं। यह एक गंभीर स्थिति है, जिसे सरकार द्वारा तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
महंगाई के इस दौर में, 10,000 रुपये का मानदेय एक शिक्षामित्र और उसके परिवार की जीविका चलाने के लिए नाकाफी साबित हो रहा है। शिक्षा मित्रों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं मिल रहा है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। एक शिक्षामित्र का कार्य एक नियमित शिक्षक के समान ही होता है, फिर भी उन्हें समान वेतन और सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। यह उनके साथ अन्याय है, जो उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर बना रहा है। शिक्षामित्र संघ का मानना है कि यह समय है कि सरकार शिक्षामित्रों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझे और उनके मानदेय में यथाशीघ्र वृद्धि करे।
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ की प्रमुख मांगों में से एक है कि शिक्षामित्रों को शिक्षक पद पर समायोजित किया जाए। जब तक यह समायोजन नहीं हो पाता, तब तक उन्हें शिक्षक के समान सभी सुविधाएं दी जाएं। इनमें वेतन वृद्धि, स्वास्थ्य बीमा, और अन्य सुविधाएं शामिल हैं। संघ का यह भी कहना है कि मानदेय की वृद्धि तब तक एक अस्थायी समाधान है, जब तक शिक्षामित्रों को शिक्षक पद पर समायोजित नहीं किया जाता।
शिक्षामित्रों की एक अन्य महत्वपूर्ण मांग है कि सरकार उनके साथ किए गए वादों को पूरा करे। 2017 में मानदेय में वृद्धि का फैसला स्वागत योग्य था, लेकिन वर्तमान समय में यह मानदेय आवश्यकता से कम है। सरकार को शिक्षामित्रों के योगदान को सम्मान देना चाहिए और उनके वेतन और सुविधाओं को पुनः निर्धारित करना चाहिए। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ ने सरकार को यह चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों को समय रहते पूरा नहीं किया गया, तो शिक्षामित्र एक विशाल आंदोलन के लिए तैयार हैं। यह आंदोलन प्रदेशव्यापी होगा और सरकार पर दबाव बनाने के लिए हर संभव कदम उठाया जाएगा। संघ ने साफ किया है कि यदि उनकी मांगे नहीं मानी गईं, तो वे मजबूर होकर आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे। शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक होगा, लेकिन सरकार को उनकी ताकत का एहसास कराएगा। संघ का मानना है कि सरकार को इस स्थिति से बचने के लिए शिक्षामित्रों की भावनाओं को समझना चाहिए और उनकी मांगों को समय पर पूरा करना चाहिए।

इस गंभीर स्थिति का समाधान योगी सरकार निकाले
शिक्षा मित्र वेलफेयर एसोसिएशन के वरिष्ठ नेता श्याम सिंह भदौरिया ने बताया कि उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने पर मजबूर किया जा रहा है। सरकार को चाहिए कि वह शिक्षामित्रों की कठिनाइयों को समझे और उनके मानदेय में तत्काल वृद्धि करे। साथ ही, उन्हें शिक्षक पद पर समायोजित करने की प्रक्रिया को भी जल्द से जल्द प्रारंभ किया जाए। ऐसा न होने पर, शिक्षामित्र संघ सरकार के खिलाफ आंदोलन करेगा। सरकार से अपील है कि वह इस गंभीर स्थिति का समाधान निकाले और शिक्षामित्रों को उनके अधिकार प्रदान करे।