स्वराज इंडिया : संवाददाता / कानपुर
शहर की वर्दी पर जो दाग लगाने की कोशिश हुई थी, अब उसकी असली तस्वीर सामने आ गई है। किदवई नगर चौकी इंचार्ज दरोगा प्रवास शर्मा को बदनाम करने के पीछे जो कहानी बुनी गई थी, वह अब गैंगवार स्क्रिप्ट की तरह लीक हो चुकी है।
कुछ तथाकथित पत्रकारों की टीम ने मिलकर दरोगा को न केवल फंसाने की साजिश रची, बल्कि सोशल मीडिया के जरिए इसे एक जनता बनाम पुलिस का मुद्दा बनाने की कोशिश की गई। अब इस मामले में बड़ा खुलासा हुआ है—जिस युवक ने दरोगा पर अपहरण और वसूली जैसे गंभीर आरोप लगाए थे, उसने खुद कबूल किया है कि वह ब्लैकमेलिंग गैंग के इशारे पर खेल रहा था।
वर्दी नहीं, इरादे निशाने पर थे
दरोगा प्रवास शर्मा का अब तक का कार्यकाल ईमानदारी और कड़ाई के लिए जाना जाता रहा है। देह व्यापार, नशे की तस्करी और अवैध धंधों पर उन्होंने जहां भी तैनात रहे, सख्त कार्रवाई की। यही कारण है कि उन्हें किदवई नगर जैसे वीआईपी क्षेत्र में जिम्मेदारी दी गई, जो कई नेताओं, विधायकों और रसूखदारों का गढ़ है।
लेकिन यहीं सक्रिय था एक अपराधी नेटवर्क, जो “पत्रकारिता” का मुखौटा पहनकर अपने गंदे कारोबार—ब्लैकमेलिंग, रंगदारी और फर्जी मुकदमे—चलाता था। दरोगा की सख्ती से बौखलाए इस नेटवर्क ने उनके खिलाफ झूठे आरोपों की पटकथा लिखी और सोशल मीडिया पर अभियान चलाया।
मुखबिर नहीं, मोहरा था युवक
जिस युवक ने दरोगा पर अपहरण और मध्यप्रदेश क्राइम ब्रांच के नाम पर वसूली का आरोप लगाया था, उसी ने अब स्वीकार किया है कि उसे गाइड कर ये सारा नाटक करवाया गया। उसके पीछे कुछ फर्जी पत्रकार थे, जिन्होंने उसे “कहानी” तैयार करवाई ताकि दरोगा को निलंबन तक पहुंचाया जा सके।
यह महज चरित्रहनन का मामला नहीं, बल्कि एक सिस्टमेटिक ब्लैकमेलिंग ऑपरेशन का हिस्सा था। युवक के बयान के बाद यह साबित हो गया कि मामला निजी दुश्मनी या पीड़ित की शिकायत का नहीं, बल्कि पूरी तरह से पैसे और दबाव का खेल था।
पत्रकारों की गिरती साख, जनता का टूट रहा भरोसा
इस पूरे प्रकरण ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब पत्रकारिता जैसी जिम्मेदार विधा को अपराधी औजार बना लें, तो सच कैसे बचेगा? दरोगा प्रवास शर्मा जैसे कर्मठ अफसरों के खिलाफ साजिश कर न केवल पुलिस की साख गिराने की कोशिश की गई, बल्कि जनता के भरोसे को भी खरोंच दी गई।
अब होना चाहिए सर्जिकल स्ट्राइक
यह मामला अब सिर्फ एक अफसर की छवि को बचाने का नहीं, बल्कि फर्जी पत्रकारिता के नाम पर चल रहे अपराधों को जड़ से खत्म करने का है। पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार को चाहिए कि वे इस प्रकरण को मिसाल बनाएं—गहराई से जांच कराएं, और जो भी तथाकथित पत्रकार, ब्लैकमेलर और उनके सहयोगी इसमें शामिल हों, उनके खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जाए।
“वर्दी को बदनाम करने की ये साजिश अब खुल चुकी है। अब वक्त है कि नकाब उतारे जाएं, और असल दोषियों को कानून की चौखट पर खड़ा किया जाए।”
यह खबर महज़ एक दरोगा को न्याय दिलाने की नहीं है। यह एक सामाजिक चेतावनी है कि अपराध जब कलम और कैमरे के पीछे छिपे, तो वह सबसे खतरनाक होता है।