कोर्ट में दलील—विवाहेतर संबंध सेवा नियमों का उल्लंघन नहीं
शिवांक अग्निहोत्री स्वराज इंडिया

कानपुर पूर्व एसीपी मोहम्मद मोहसिन को यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोपों के बाद निलंबित किए जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उनके निलंबन पर फिलहाल रोक लगाते हुए राज्य सरकार को चार सप्ताह में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। मोहसिन की ओर से अधिवक्ता एलपी मिश्रा ने अदालत में दलील दी कि विवाहेतर संबंध को यूपी सरकारी सेवक आचरण नियमावली, 1956 के तहत तब तक कदाचार नहीं माना जा सकता जब तक वह कानूनी रूप से विवाह में परिवर्तित न हो। उनका कहना था कि शादीशुदा होते हुए भी किसी अन्य महिला से निजी संबंध बनाना अनुशासनात्मक कार्रवाई का आधार नहीं हो सकता, जब तक उससे सेवा में प्रत्यक्ष प्रभाव न पड़े। हाईकोर्ट ने इन दलीलों को संज्ञान में लेते हुए मोहसिन के निलंबन आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। अब मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को निर्धारित की गई है।
-पीड़िता की लड़ाई जारी: एससी/एसटी आयोग और डीजीपी से की शिकायत-
आईआईटी कानपुर की पीएचडी छात्रा द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में पूर्व एसीपी मोहसिन पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। छात्रा का आरोप है कि मोहसिन ने शादी का झांसा देकर उसका यौन शोषण किया और जब उसने विरोध किया तो उसे धमकाया गया। यह मामला 12 दिसंबर 2024 को कल्याणपुर थाने में दर्ज हुआ था। इसके बाद पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार ने मोहसिन को कानपुर से हटाकर लखनऊ मुख्यालय से अटैच कर दिया था और बाद में रिपोर्ट के आधार पर निलंबित कर दिया गया था। पीड़िता ने डीजीपी को ई-मेल भेजकर न्याय की गुहार लगाई है, साथ ही एससी/एसटी आयोग में भी शिकायत दर्ज की है। पीड़िता का कहना है कि वह जल्द ही आयोग के अधिकारियों से मिलकर इस मामले में ठोस कार्रवाई की मांग करेगी। उसका आरोप है कि मोहसिन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को दबाने की कोशिश हो रही है।