
कोर्ट के कई आदेशों के बावज़ूद यूपी सरकार ने प्रस्तुत नहीं किये प्रमाण,
यूपी मुख्य सचिव एनएचआरसी कोर्ट में तलब हुए, पेशी से छूट मांगी, पर कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया , कोर्ट ने जारी किया रिमाइंडर, किया सख़्त कार्रवाई के लिए आगाह 105 साल पुरानी कानपुर पुलिस लाईन बैरक ढह जाने से मृतक और घायल पुलिस कर्मियों के न्याय के लिये शहर के पंकज कुमार सिंह की याचिका पर एनएचआरसी कोर्ट में चल रही सुनवाई
प्रमुख संवाददाता स्वराज इंडिया
लखनऊ/ नई दिल्ली। सरकार सुशासन के बड़े बड़े दाबे जरूर कर ले लेकिन उसके दरबार में ही कोर्ट के आदेशों को दरकिनार किया जाये तो सूबे में लॉ एण्ड आर्डर के एग्ज़िक्यूशन और कानून का राज का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। ऐसे में कोई अपने उवाच ज़ाहिर भी कर दे तो उसके ज़हन में कार्रवाई का भय घर कर जाता है। यह हम नहीं कह रहे यह जनता के बीच से उठी आवाज़ को हम समाचार के रूप में आपको बता रहे हैं। आपको बता दें कि 105 साल पुरानी कानपुर पुलिस लाईन बैरक ढह जाने से मृतक और घायल पुलिस कर्मियों के न्याय के लिये शहर के पंकज कुमार सिंह की याचिका पर एनएचआरसी कोर्ट में चल रही है, इन सुनवाई की तारीखों की प्रोसीडिंग देखिये तो उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य अधिकारी यानी मुख्य सचिव अपने ही मातहतों के न्याय के लिए कितने संजीदा हैं वो पिछले चार साल से अधिक समय से एनएचआरसी कोर्ट की तरीख़ दर तारीख और कोर्ट के जारी सम्मन से समझा जा सकता है। एनएचआरसी कोर्ट द्वारा जारी सशर्त सम्मन के जवाब में, सरकार सचिव,द्वारा दिनांक 18.11.2024 की एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। यूपी सरकार ने इसमें कहा है कि मृतक की पत्नी और तीन घायलों को मुआवजा देने का मामला विचाराधीन है, जिसमें अभी और वक्त लगने की संभावना है. उन्होंने रिपोर्ट सौंपने के लिए दो महीने का और समय देने की प्रार्थना की.उन्होंने मुख्य सचिव,सरकार की एनएचआरसी के समक्ष व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट देने का भी अनुरोध किया . जिसे स्वीकार कर समय दिया गया। एनएचआरसी कोर्ट ने मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश शासन और अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार को रुपये के अनुशंसित मुआवजे के वितरण पर की गई कार्रवाई पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया . अनुसरण में, एसपी (एचआर), लखनऊ, उत्तर प्रदेश को संबोधित उप सचिव के दिनांक 08.04.2025 के एक आंतरिक पत्र सहित विभिन्न संचार प्राप्त हुए हैं, जिसमें कहा गया है कि मृतक कांस्टेबल अरविंद कुमार सिंह की पत्नी को 20,00,000/- रुपये और मां को 5,00,000/- रुपये की अनुग्रह राशि का भुगतान किया गया था, हालांकि भुगतान का प्रमाण पत्र के साथ संलग्न नहीं किया गया है। इसके अलावा, आयोग के निर्देशानुसार तीन घायल कर्मियों- हेड कांस्टेबल अमृत लाल, कांस्टेबल राकेश और कांस्टेबल मनीष कुमार में से प्रत्येक को25,000/- रुपये की अंतरिम सहायता के संबंध में कोई जानकारी प्रदान नहीं की गई है। साथ ही मृतक के आश्रितों को मिलने वाले ई-पेमेंट की रसीद भी गायब है. कोई रिपोर्ट नहीं मिली है.यह मामला एनएचआरसी कैंप बैठक के दौरान समीक्षा किए जाने वाले सात लंबित मामलों में से एक है।एनएचआरसी कोर्ट ने सख्त लहज़े में आदेश किया है कि सरकार के मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग, को एक नया अनुस्मारक जारी किया जाए। मृतक पुलिस कर्मी और घायलों के मुआवजा राशि के भुगतान का प्रमाण छह सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करना होगा।, अन्यथा ऐसा न करने पर यह आयोग पीएचआर अधिनियम की धारा 13 के तहत अपनी जबरदस्त शक्तियों को लागू करने के लिए बाध्य होगा।

पुलिस कर्मियों के न्याय के लिए लड़ रहे पंकज एक आम नागरिक की प्रतिक्रिया पुलिस के प्रति कैसी भी हो लेकिन कानपुर के सोशल एक्टिविस्ट और पेशे से इंजीनियर पंकज कुमार सिंह पुलिस हित में लगातार सक्रियता में रहते है। वे पुलिस कर्मियों और उनके परिजनों के इलाज़ के लिए कैशलेस व्यवस्था के लिए भी उच्च पर कार्रवाई के लिए सक्रीय हैं। उनका कहना है कि विपरीत परिस्थियों में पुलिसकर्मी लोकसेवा में तैनात रहते है उनकी मूलभूत सुविधाओं के लिए प्रयास करना और जिम्मेदारों तक बात पहुँचाना हमारा कर्तव्य है। मैं यह मानता हूं कि पुलिसकर्मी हमारी पुलिस व्यवस्था की रीढ़ होते हैं। यही वे लोग हैं जो दिन-रात कानून और व्यवस्था बनाए रखते हैं। उनका जीवन सुरक्षित और सम्मानित होना हमारा सामाजिक और संवैधानिक कर्तव्य है। इसलिए हम पुलिस के न्याय के सक्रियता में हैं, क्योंकि न्याय सिर्फ आम नागरिक का नहीं, बल्कि हर वर्दीधारी का भी अधिकार है।
