
स्वराज इंडिया|मुख्य संवाददाता|नई दिल्ली
2008 मालेगांव ब्लास्ट केस को लेकर एक चौंकाने वाला दावा सामने आया है। उस समय मामले की जांच से जुड़े रहे महाराष्ट्र ATS के पूर्व अधिकारी इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने खुलासा किया है कि ब्लास्ट के असली दो आरोपी – रामचंद्र कलसांगरा और संदीप डांगे को एटीएस ने नवंबर 2008 में मुठभेड़ में मार गिराया था, लेकिन कागज़ों में उन्हें अब तक फरार (वांटेड) दिखाया गया।
मुजावर के अनुसार, यह सब एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया ताकि ब्लास्ट की असल साज़िश कभी सामने न आ सके। इसके बाद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल श्रीकांत पुरोहित और अन्य को मामले में फंसाया गया।
“भगवा आतंकवाद” नैरेटिव रचने का प्रयास: मुजावर

पूर्व अधिकारी ने यह भी आरोप लगाया कि जांच एजेंसी पर उस समय की सरकार द्वारा दबाव डाला गया था कि किसी भी तरह RSS प्रमुख मोहन भागवत और योगी आदित्यनाथ को इस केस से जोड़कर गिरफ्तार किया जाए।
मुजावर का दावा है कि उन्हें और कुछ अन्य अधिकारियों को नागपुर भेजा गया, लेकिन जांच में RSS या उसके किसी पदाधिकारी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। इसके बावजूद उनसे कहा गया कि भागवत को गिरफ्तार करें।
उन्होंने गिरफ्तारी से इंकार कर दिया, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर झूठे केस में जेल भेज दिया गया। मुजावर ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ राजनीतिक और सांप्रदायिक आधार पर कार्रवाई हुई, उन्हें डेढ़ साल जेल में रहना पड़ा और उनकी पेंशन तक रोक दी गई।
“मैं कौम से हूं, इसलिए मुझे चुना गया”: गंभीर आरोप

महबूब मुजावर ने आरोप लगाया कि उन्हें इसलिए इस मिशन के लिए चुना गया क्योंकि उनकी पहचान सरकार के नैरेटिव को मजबूत करने के लिए उपयुक्त मानी गई। उन्होंने कहा कि “सरकार भगवा आतंकवाद का नैरेटिव खड़ा करना चाहती थी और मैं उनके लिए साधन था।”
बाद में उन्हें कोर्ट से सभी आरोपों में बरी कर दिया गया, लेकिन तब तक उनका करियर और जीवन बुरी तरह प्रभावित हो चुका था।
अब उठ रही है जांच की मांग
इस नए दावे के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या 2008 में मालेगांव ब्लास्ट की जांच में सचमुच राजनीतिक हस्तक्षेप हुआ था?
कुछ सामाजिक संगठनों और नागरिक समूहों ने मांग की है कि परमवीर सिंह सहित उस समय के सभी जांच अधिकारियों से पूछताछ की जाए, और आवश्यकता पड़ने पर तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह से भी इस मामले में स्पष्टीकरण लिया जाए।
निष्कर्ष
महबूब मुजावर के दावों ने मालेगांव केस की जांच को एक बार फिर विवादों के घेरे में ला खड़ा किया है। अगर इन आरोपों की स्वतंत्र जांच होती है और तथ्यों की पुष्टि होती है, तो यह भारत की न्याय प्रक्रिया और सुरक्षा तंत्र के लिए एक गंभीर पुनरावलोकन का विषय बन सकता है।
[डिस्क्लेमर]: यह रिपोर्ट महबूब मुजावर द्वारा सार्वजनिक रूप से किए गए दावों और विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। स्वराज इंडिया किसी आरोप या पक्ष की पुष्टि नहीं करता। कानून के अनुसार अंतिम सत्य न्यायालय द्वारा ही तय किया जाएगा।
