
सपना बनकर रह गया चपरघटा पॉवर प्लांट
कानपुर देहात में तीन मंत्री, और 4 सांसद फिर भी गजब हाल
किसानों के दिल के अरमान आंसुओं में बह गए
20 मेगावाट के दो पावर के 13 प्लॉट थे प्रस्तावित 80 हेक्टेयर जमीन का 10 हुआ था अधिग्रहण
शंकर सिंह, स्वराज इंडिया
कानपुर देहात। भोगनीपुर तहसील क्षेत्र के मूसानगर क्षेत्र के चपरघटा में लगभग डेढ़ दशक पूर्व लगाया जा रहा था। पावर प्लांट कोयले का आंवटन न हो पाने से काम अधर में लटक गया और क्षेत्र के लोग जिन्हें पावर प्लांट लग जाने पर क्षेत्र के विकास की आस थी। वही आस दिल के अरमां आसूंओं में बहा रहे हैं। अब तो पॉवर प्लांट की यादें सिर्फ सपना बनकर रह गई हैं। सरकार ने भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और बीहड़ पट्टी के लोग विकास की आस जताते ही रह गए। लगभग एक हजार हेक्टेयर भूमि आज भी बंजर की हालत में पड़ी हुई है। अपने लोन का पैसा वसूलने के चक्कर में अब उस भूमि को बैंक ने अपने कब्जे में ले लिया है। वहीं जिन किसानों को जमीन बेचने का मुआवजा मिला था। वह किसान अब जमीन न होने के अभाव में मजदूर बनकर रह गए। भोगनीपुर तहसील क्षेत्र के चपरघटा में लगभग 13 वर्ष पूर्व लैंको इंफ्राटेक व हिमावत कम्पनी के अधिकारियों ने दस्तक दी और किसानों को बताया गया कि यहां पावर प्लांट लगना है। पावर प्लांट लगने के बाद यहां रोजगार के अवसर और बढेगे और गांव के लोगों को रोजगार लाभ मिलेगा। इसमें गांव कछगांव, इमिलिया, सरांय, चपरघटा, आइन पथार, मुंडा, सिहारी, बम्हरौली भरतौल आदि के और लगभग 1080 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की गई और किसानों को उनकी जमीन का मुआवजा देने के साथ ही पावर प्लांट लगने पर नौकरी व रोजगार की भी उम्मीद जगी थी। प्रस्ताव के तहत यहां 1320-1320 मेगावाट के दो बिजली परियोजनाओं की तैयारी शुरु हुई थी। वर्ष 2011 में तत्कालीन डीएम व कंपनी अफसरों की मौजूदगी में प्लांट निर्माण के लिये भूमि पूजन हुआ था। पहले तो लोग यही सोचते रहे कि शायद कुछ कागजी कार्रवाई रह गई हो, जिसे पूरा करने में समय लग रहा हो, लेकिन धीरे-धीरे 13 वर्ष बीत गए और पावर प्लांट का निर्माण अधर में ही लटक गया और यादें बनकर रहे गई । वहीं प्लांट खोलने वाली कम्पनियों के जिम्मेदार भी इस ओर झांकने तक नहीं आए। वहीं वर्तमान भाजपा सरकार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया और कम्पनी का कोयले का आवंटन न हो पाने के कारण 1080 हेक्टेयर जमीन बंजर बनकर रह गई है। लोगों का कहना है कि अगर सरकार फिर से प्रयास करके इस योजना को परवान चढ़ाने की कोशिश करे तो बीहड़ के आसपास के जनपदों का भी विकास तेज हो सकता है*
5 बरस में पूरा होना था काम…
सेंगुर नदी इलाके से जुडे इन गांवों की तमाम असमतल जमीन किसानों का एक फसल दे पाती थी। किसानों को उस समय के रेट से सही दाम मिले तो जमीन कंपनी को बैनामा कर दी गई। जमीन जाने के बदले लोगों को नौकरी रोजगार और इलाके का विकास सामने दिख रहा था। गांव की ग्रामीण ने कहा कि अधिकारियों एवं राजनेताओं के द्वारा इस ओर ध्यान न देने के कारण क्षेत्र के हाथों से पावर प्लांट चला गया। अगर पावर प्लांट लग जाता तो क्षेत्र चौमुखी विकास होता और जनपद का नाम चमक जाता