
हर साल 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है
समस्याओं को निस्तारित करवाने की दवा है पत्रकारिता क्षेत्र
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
कानपुर। हिंदी पत्रकारिता के योगदान को सराहने और पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिए हर साल 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत में हिंदी का पहला अखबार उदन्त मार्तण्ड अखबार प्रकाशित हुआ था जिसका प्रकाशन और संपादन कानपुर के पंडित जुगल किशोर शुक्ल द्वारा किया गया था। भारत में पत्रकारिता एक समय पर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाती थी। समाज की आवाज उठाने, सत्ता से सवाल पूछने और जनभावनाओं को मंच देने में इसकी भूमिका अविस्मरणीय रही है लेकिन बीते कुछ वर्षों में पत्रकारिता का स्तर चिंताजनक रूप से गिरा है। पत्रकारिता कभी मिशन था। आजादी के आंदेलन तक मिशन रहा। धीरे-धीरे इसमें व्यापारी आने लगे। औद्योगिक घराने उतर गए। इनका उद्देश्य समाज सेवा नही रहा व्यापार हो गया। अब सवाल यह नहीं है कि पत्रकार क्या कर रहे हैं असली सवाल यह है कि पत्रकारों को करने क्या दिया जा रहा है। पत्रकारिता पर आज जो सबसे बड़ा संकट है वह संपादकीय ईमानदारी का नहीं बल्कि मालिकाना इच्छाओं का है। हमें यह सवाल करने की जरूरत है कि क्या पत्रकारिता की आत्मा अब कॉरपोरेट स्लोगनों में दफन हो चुकी है? क्या वाकई हम एक लोकतांत्रिक समाज में पत्रकारिता दिवस मना रहे हैं या केवल एक खोखले विश्वास का उत्सव मनाया जा रहा है। पहले सवाल पत्रकारों से होते थे उनकी नीयत, उनके विचारों, उनकी प्रतिबद्धता पर लेकिन अब सवाल पत्रकारिता के मालिकों से होने चाहिए। आखिर जब मालिक का उद्देश्य लाभ होगा, तो सच्चाई पर कैसे टिकेगा एक ईमानदार रिपोर्टर? एक आम रिपोर्टर के पास अब न तो स्वतंत्रता है, न संसाधन और न ही सुरक्षा। वह तो एक मशीन की तरह चलाया जा रहा कर्मचारी है इसलिए आज सवाल सिर्फ यह नहीं है कि पत्रकार क्या कर रहे हैं बल्कि यह है कि पत्रकारिता को किसने, कब और किस कीमत पर गिरवी रखा है। आज फेसबुक पत्रकार, न्यूज पोर्टल चलाने वाले पत्रकार, यूटयूब चैनल चलाने वाले पत्रकारों की देश में बाढ़ सी आ गई है। दैनिक अखबार भी तेजी से बढ़ रहे हैं। ऑनलाइन समाचार पत्रों की रोज गिनती बढ़ती जा रही है। जिसे देखो पत्रकारिता कर रहा है। इतना सब होने के बावजूद पिछले कुछ साल में खबर की विश्वसनीय घटी है। पत्रकारिता का स्तर गिरा है। पत्रकार का सम्मान घटा है। पहले माना जाता कि अखबार में छपा है तो सही होगा किंतु मीडिया में आई खबर की आज कोई गारंटी देने को तैयार नहीं है। इससे खबरों की निष्पक्षता और निर्भीकता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं। नतीजा जांच रिपोर्टिंग, जमीनी सच्चाई और सत्ता से सवाल पूछने की परंपरा लगभग समाप्त होती जा रही है इसलिए जरूरी है कि स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा मिले। पत्रकारिता कोई व्यवसाय नहीं है यह समाज कल्याण के प्रति व्यक्ति का वह गुण है जो अपने निजी हित से परे पूरी मुखरता के साथ आत्म अभिव्यक्ति को स्वर देता है। पत्रकारिता कोई व्यवसाय नहीं यह समाज कल्याण के प्रति व्यक्ति का वह गुण है जो अपने निजी हित से परे पूरी मुखरता के साथ आत्म अभिव्यक्ति को स्वर देता है। हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर हमें इस शुभ दृष्टि को और सशक्त करना होगा ताकि यह जनता के हित में सत्य और निष्ठा का प्रकाशन कर सके।