Wednesday, April 2, 2025
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महाकुंभ में वीआईपी कल्चर से जूझती आम जनता

महाकुंभ में आने वाले वीआईपी की सेवा सत्कार और इंतजाम में पूरा प्रशासन जुटा रहा

आम श्रद्धालुओं के लिए रुकने के लिए कोई टेंट तक नहीं मिला

मुख्य संवाददाता स्वराज इंडिया
प्रयागराज/लखनऊ।

मौनी अमावस्या महाकुंभ में भगदड़, जिसके चलते तीस लोगों की मौत ने ऐसे मौकों पर कुछ विशेष लोगों को मिलने वाले वीआईपी सम्मान पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। सवाल यह पूछा जा रहा है कि हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों और आयोजनों में क्यों भक्तों के बीच भेदभाव होता है ? महाकुंभ में 29 जनवरी को मौनी अमवस्या के स्नान के दिन भगदड़ के कारण जो दर्दनाक हादसा हुआ उसने वाईआईपी कल्चर पर एक बार फिर से नये सिरे से बहस छेड़ दी है। सवाल उठ रहा है कि जब गुरुद्वारे में वीआईपी दर्शन नहीं, मस्जिद में वाआईपी नमाज नहीं, चर्च में वीआईपी प्रार्थना नहीं होती है तो सिर्फ मंदिरों में कुछ प्रमुख लोगों के लिये वीआईपी दर्शन क्यों जरूरी हैं ? क्या इस पद्धति को खत्म नहीं किया जाना चाहिए, जो हिन्दुओं में दूरियों का कारण बनता है ? खैर, योगी सरकार ने मौनी अमावस्या के दिन हुए हादसे से सबक लेते हुए वीआईपी सिस्टम पर रोक लगा दी है। महाकुंभ के लिये सभी वीआईपी पास भी रद्द कर दिये गये। काश यह व्यवस्था पहले ही खत्म कर दी जाती। यह इस लिये भी जरूरी था क्यों भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 07 जनवरी को ही धार्मिक स्थलों पर होने वाली वीआईपी व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े कर चुके थे।बब तो उन्हें ऐसे हादसे की उम्मीद भी नहीं रही होगी। उन्होंने कहा था कि कि वीआईपी व्यवस्था समानता के सिद्धांत के खिलाफ है और इसे धार्मिक जगहों से पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि धार्मिक स्थल समानता के प्रतीक हैं, जहां हर व्यक्ति ईश्वर के सामने बराबर होता है. वहीं उन्होंने जोर देकर ये भी कहा कि वीआईपी दर्शन की अवधारणा भक्ति के खिलाफ है. यह एक असमानता का उदाहरण है, जिसे तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए. वहीं, उन्होंने धर्मस्थलों पर समानता को स्थापित करने की बात कही थी।
उप राष्ट्रपति धनखड़ ने अपने संबोधन कहा था कि धार्मिक स्थलों को समानता के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए. जब किसी को विशेषाधिकार दिया जाता है, या वीआईपी या वीवीआईपी का दर्जा दिया जाता है, तो यह समानता के विचार का अपमान है. इस दौरान उन्होंने कर्नाटक के एक धर्मस्थल का उदाहरण भी बताया, जो समानता का संदेश देता है.

कई तीर्थ स्थानों पर वीआईपी का होता आवभगत

तीर्थ स्थलों और गंगा स्नान में वीआईपी संस्कृति की बात कि जाये तो महाकुंभ मेले प्रयागराज, हरिद्वार या वाराणसी जैसे तीर्थ स्थलों पर आम श्रद्धालुओं को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन वीआईपी के लिए अलग घाट बना दिए जाते हैं।जहां आम लोग भीड़ में संघर्ष करते हैं, वहीं खास लोगों के लिए विशेष स्नान व्यवस्था, सुरक्षा घेरा और सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं।कई बार वीआईपी के स्नान के लिए आम श्रद्धालुओं को घंटों रोका जाता है, जिससे भीड़ में अफरा-तफरी तक मच जाती है। महाकुंभ हादसे की असली वजह क्या थी, ये तो न्यायिक जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन सवाल ये है कि जहां करोड़ों लोग जुट रहे हों, वहां आम श्रद्धालुओं की असुविधा को बढ़ाकर वीआईपी स्नान जैसी व्यवस्था क्यों? वीआईपी स्नान के नग्न प्रदर्शन की टीस महाराज प्रेमानंद गिरि के शब्दों में भी दिखी जब उन्होंने कहा कि प्रशासन का पूरा ध्यान वीआईपी पर था। आम श्रद्धालुओं को उनके हाल पर छोड़ दिया गया था। उनका आरोप है कि पूरा प्रशासन वीवीआईपी की जी-हुजूरी में लगा रहा, तुष्टीकरण में लगा रहा।

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