(आरटीओ कानपुर कार्यालय में उगाही तंत्र)
ट्रैक्टर व ट्रॉली के लिए हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट भी लग रही सिर्फ कागजों में
चेकिंग के नाम पर परिवहन और यातायात विभाग के अधिकारी और कर्मी नियमों की उड़ा रहे धज्जियां
निर्मल तिवारी/स्वराज इंडिया
कानपुर । स्मार्ट सिटी के लगभग हर क्षेत्र, हर मोहल्ले, हर गली में आपको कहीं यदा कदा तो कहीं लगातार ट्रैक्टर चलते नजर आ जाएंगे। इनमें से अनुमानतः 90 से 95% ट्रेक्टर कृषि कार्य के लिए पंजीकृत हैं। लेकिन इनका धड़ल्ले से व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है। अधिकांश ट्रैक्टर परिवहन और यातायात विभाग के सभी नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं लेकिन पता नहीं क्यों दोनों ही विभाग इन ट्रैक्टर को अनदेखा कर रहे हैं ।बिना नंबर प्लेट शहर की सड़कों पर धड़ल्ले से दौड़ रहे यह ट्रैक्टर सरकार को तगड़ा राजस्व का चूना लगा रहे हैं।
ट्रैक्टर के बढ़ते उपयोग और बढ़ती दुर्घटनाओं ने सरकार का ध्यान खींचा और फिर तय किया गया कि कृषि कार्य से इतर यदि ट्रैक्टर का अन्य व्यावसायिक कार्यों में उपयोग होता है तो ट्रैक्टर और ट्राली दोनों का व्यवसायिक रजिस्ट्रेशन अनिवार्य रूप से कराना होगा। व्यावसायिक ट्रैक्टर का अन्य व्यावसायिक वाहनों की भांति रोड टैक्स भी देना होगा और नियमानुसार फिटनेस प्रक्रिया से भी गुजरना होगा। हम सब जानते हैं कि कृषि उपयोग वाले ट्रैक्टर से पंजीकरण शुल्क न के बराबर लिया जाता है तो वहीं रोड टैक्स देने की आवश्यकता नहीं है और ना ही उनके लिए फिटनेस का कोई झंझट है।
इस साल की शुरुआत में ही उत्तर प्रदेश सरकार ने ट्रैक्टर के साथ ट्राली के लिए भी मानक तय किया और स्थानीय आरटीओ प्रशासन को जिम्मेदारी दी कि मानकों के अनुरूप ट्राली निर्माता का भी पंजीयन हो और पंजीकृत ट्राली निर्माता द्वारा मानक अनुसार निर्मित ट्राली का ही पंजीकरण किया जाए। इसके साथ ही ट्रैक्टर व ट्रॉली के लिए हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगना भी अनिवार्य कर दिया गया।
लेकिन सरकार की सारी कवायद कानपुर आरटीओ के लचर रवैये के चलते हवा हवाई होती नजर आ रही है। कानपुर नगर में जितनी बड़ी संख्या में व्यावसायिक ट्रैक्टर का उपयोग हो रहा है, उसके सापेक्ष शहर में व्यावसायिक ट्रैक्टरों की सूत्रों के हवाले से मिली संख्या नगण्य नजर आ रही है।

कहां-कहां हो रहा उपयोग
कानपुर नगर में सबसे ज्यादा ट्रैक्टर का उपयोग बिल्डिंग मेटेरियल के काम में हो रहा है। ईट भट्ठा मालिक पहले ईट ढोने के लिए हाफ डाला ट्रक का इस्तेमाल करते थे। लेकिन वर्तमान समय में इस काम में ट्रैक्टर ट्राली का उपयोग किया जा रहा है। मौरंग, गिट्टी ढुलाई में भी बहुत बड़ी संख्या में ट्रैक्टर ट्राली का उपयोग किया जा रहा है। इसी प्रकार नव विकसित हो रहे क्षेत्र में बिल्डिंग मेटेरियल सप्लायर मौरंग, गिट्टी, सीमेंट आदि ढोने के लिए ट्रैक्टर का ही उपयोग कर रहे हैं। अनाज ढोनेके लिए भी ट्रैक्टर का व्यवसायिक उपयोग हो रहा है। इसके साथ ही शहर में चल रही विभिन्न परियोजनाओं में भी ट्रैक्टर ट्राली का उपयोग हो रहा है। हम फिलहाल मान कर चलते हैं शहर में केस्को, नगर निगम, मेट्रो कॉरपोरेशन, हाईवे अथॉरिटी आदि सभी जगह अनुबंधित ट्रैक्टर का व्यवसायिक पंजीकरण अवश्य होगा। लेकिन सूत्रों से हमारी जानकारी के अनुसार शहर में मात्र 1424 ट्रैक्टर ही व्यावसायिक कार्यों के लिए पंजीकृत हैं। कानपुर जैसे शहर में मात्र 1424 ट्रैक्टर व्यावसायिक उपयोग के लिए पंजीकृत होना ही संकेत है कि शहर में बड़ी संख्या में कृषि कार्य हेतु पंजीकृत ट्रैक्टर का व्यवसायिक उपयोग हो रहा है।
कृषि वाहन दिखाकर टैक्स की हो रही चोरी
ट्रैक्टर का नाम आते ही दिमाग में जो सबसे पहला वाक्य आता है वह है किसान का सच्चा मित्र। ट्रैक्टर के उपयोग ने भारत में न केवल खेती की तस्वीर बदल दी बल्कि किसानों की तकदीर भी बदल दी। समय से जुताई, समय से बुवाई, समय से सिंचाई, और समय से फसल की कटाई तक ट्रैक्टर ने किसान की हर मुश्किल आसान कर दी। लंबे समय तक ट्रैक्टर कृषि कार्य की सीमाओं में ही बंधा रहा। गांव, कस्बे की बाजार की लक्ष्मण रेखा से बंधा रहा। कभी अगर लक्ष्मण रेखा पार भी की तो मात्र फसल को शहर की मंडी तक पहुंचाने के लिए, हां अपवाद स्वरूप फसल कटकर आने के बाद कई बार बारात भी ट्रैक्टर से गई, लेकिन उसकी मंजिल भी कोई गांव ही रहा। लेकिन 21वीं सदी जो कि तकनीक की सदी है, इस सदी में ट्रैक्टर निर्माण में भी नई-नई तकनीक आई और ट्रैक्टर अब मात्रा किसान का ही सच्चा हितैषी नहीं रहा और ना ही गांव कस्बे की सीमाओं तक सीमित रहा। अब ट्रैक्टर माल ढुलाई का भी एक आदर्श साधन बन गया। किसान के साथ साथ ट्रैक्टर व्यापारी, उद्यमी सभी का साथी हो गया। कृषि कार्य के साथ ही ट्रैक्टर का धड़ल्ले से व्यावसायिक उपयोग भी होने लगा।
