
बांस के सहारे तैरता रहा भूखा-प्यासा, आंखों के सामने डूब गए 14 साथी, भतीजे की लाश को 3 दिन कंधे पर उठाए रखा
10 जुलाई को चिटगांव के पास बांग्लादेशी मालवाहक जहाज “जवाद” ने किया रेस्क्यू, कोलकाता में चल रहा इलाज
स्वराज इंडिया न्यूज़ ब्यूरो
कोलकाता। मानव जिजीविषा और अंतरराष्ट्रीय मानवीय सहयोग की मिसाल बन गई है पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के नारायणपुर निवासी रवींद्रनाथ दास की यह कहानी, जो पांच दिनों तक समुद्र में अकेले भूखा-प्यासा बहता रहा और अंततः बांग्लादेश के एक जहाज द्वारा उसे मौत के मुंह से निकाल लिया गया।
समंदर बना श्मशान, मौत को हराकर लौटा रवींद्र
4 जुलाई को रवींद्रनाथ 14 साथियों के साथ मछली पकड़ने के लिए नाव लेकर समुद्र की ओर निकले थे। 6 जुलाई की सुबह एक तेज समुद्री तूफान ने उनकी नाव को पलट दिया।रवींद्र बताते हैं, “नाव जैसे ही पलटी, तीन साथी उसी समय नाव के नीचे आकर मारे गए। बाकी एक-एक करके डूबते गए। मैं किसी तरह बांसों को जोड़कर एक अस्थायी राफ्ट बनाया और तैरता रहा। पांच दिन तक कुछ नहीं खाया, सिर्फ बारिश का पानी पीकर खुद को जिंदा रखा।”
भतीजे की मौत आंखों के सामने, फिर भी हार नहीं मानी

रवींद्र के मुताबिक, “मेरा भतीजा भी मेरे साथ था। तीन दिन तक उसे मैंने कंधे पर उठाए रखा। लेकिन चौथे दिन वह भी नहीं बच सका। उसकी आंखें मुझे आज भी झकझोर देती हैं।”10 जुलाई को चिटगांव के पास समुद्र में तैरते रवींद्र की नजर बांग्लादेश के कार्गो जहाज “जवाद” पर पड़ी। रवींद्र ने दो घंटे तक संघर्ष करते हुए जहाज तक पहुंचने की कोशिश की। आखिरकार, क्रू ने उसे देखा और रेस्क्यू कर लिया।
ह्यूमैनिटी की मिसाल बना बांग्लादेशी जहाज
जहाज के कप्तान और दल ने बिना देरी किए रवींद्र को पानी, खाना दिया और प्राथमिक चिकित्सा भी उपलब्ध कराई। बाद में भारतीय अधिकारियों से संपर्क कर उसे भारत वापस भेजा गया। फिलहाल रवींद्र का इलाज कोलकाता के एक अस्पताल में चल रहा है, जहां उसकी हालत अब स्थिर है।
📰 यह कहानी केवल समुद्र में फंसे एक मछुआरे की नहीं है, यह उस अदम्य साहस, उम्मीद और अंतरराष्ट्रीय मानवीय भावना की भी है, जो सरहदें नहीं देखती।
