Friday, August 22, 2025
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कानपुर पुलिस ने जिस साइबर गिरोह का पर्दाफाश किया उसका सरगना मात्र बीस हजार में रिहा हुआ

डीसीपी क्राइम ने पुलकित द्विवेदी को बताया था संगठित साइबर अपराधी गैंग का सरगना
कॉल सेंटर में काम करने वाले कर्मचारियों के उत्पीड़न की भी आई थी बात सामने

विवेचक ने पहले अभियुक्त द्वारा जांच में असहयोग के चलते गिरफ्तारी को बताया था न्यायोचित
बाद में विवेचक ने नहीं दिया न्यायिक अभिरक्षा पर बल

पुलकित द्विवेदी बीस हजार की पीबी व जांच में पूर्णतः सहयोग की अंडरटेकिंग देकर हुआ रिहा

निर्मल तिवारी स्वराज इंडिया

कानपुर। जमाना बदल रहा है लेकिन शायद पुलिस बदलने को तैयार नहीं है। अपराधी वही हैं जो नियम कानून का उल्लंघन करें और आदर्श पुलिस वह है जो तमाम नियम, कानून, बंदिशों, गाइडलाइंस का पालन करते हुए अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाए। याद यह भी रखना है कि तमाम तकनीक मात्रा पुलिस के लिए ही सहायक नहीं है बल्कि तकनीक का फायदा अपराधी तंत्र भी उठाता है। ध्यान में यह भी रखना है कि मामला जितना बड़ा होगा उसमें सावधानी और सजगता की भी उतनी ही दरकार रहती है। अन्यथा की स्थिति में सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी। कानपुर साईबर क्राइम पुलिस के साथ कुछ ऐसा ही घटित हुआ है। डीसीपी क्राइम ने जिसे साईबर गिरोह का सरगना बताया वो आरोपी लिखापढ़ी में तकनीकी खामी के चलते 96 घंटे के बाद ही विवेचक द्वारा न्यायिक अभिरक्षा बढ़ाने पर बल नहीं दिए जाने के चलते मात्र 20 हजार की पीबी और अंडरटेकिंग दाखिल कर शान के साथ रिहा हो गया।

14 अगस्त को डीसीपी क्राइम ने पीसी में किया खुलासा

14 अगस्त को डीसीपी क्राइम एस एम कासिम आबिदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पुलकित द्विवेदी की गिरफ्तारी की जानकारी दी और खुलासा किया कि पुलकित द्विवेदी कॉर्पोरेट की तर्ज पर संगठित तरीके से कॉल सेंटर बनाकर विदेश में प्रोडक्ट बिकवाने का झांसा देकर साईबर ठगी कर रहा है। डीसीपी पर क्राइम ने यह भी बताया कि पुलकित द्विवेदी न केवल भारत बल्कि कई अन्य देशों के लोगों को भी अपने ठगी के जाल में फंसा चुका है। उस पर कॉल सेंटर में काम करने वाले कर्मचारियों के उत्पीड़न करने का भी आरोप सामने आया। डीसीपी क्राइम ने यह भी बताया कि अपराधी पुलकित द्विवेदी के 6 बैंक खातों में जमा साढ़े चार करोड़ रुपए सीज कर दिए गए हैं। कार्य स्थल पर मिले 57 मोबाइल फोन, 78 डेस्क टॉप, 11 लैपटॉप आदि सामग्री को पुलिस ने बरामद कर लिया है। साईबर क्राइम थाने में अपराध संख्या 47 सन 25 अंतर्गत धारा 318(4), 319(2)और 66 डी आईटी एक्ट दर्ज किया गया है। गिरफ्तार आरोपी पुलकित की पत्नी और एक अन्य को फरार बताया गया।

रिमांड न्यायालय पहुंचते ही आया कैंसिलेशन का प्रार्थना पत्र

14 अगस्त को एक ओर डीसीपी क्राइम पुलिस की पीठ थपथपा रहे थे तो दूसरी ओर अदालत में रिमांड पहुंचते ही पुलकित द्विवेदी के अधिवक्ता पियूष शुक्ला ने गिरफ्तारी से संबंधित सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का पालन न करने के आधार पर रिमांड कैंसिल किए जाने की प्रार्थना कर दी। सबसे बड़ी बात यह थी कि पुलिस लिखा पढ़ी में अभियुक्त की गिरफ्तारी 13 अगस्त को समय 19:45 पर, तिवारी होटल के पास, थाना रेल बाजार से प्रदर्शित की गई थी। वहीं इसके उलट पुलकित द्विवेदी के अधिवक्ता ने साक्ष्य देते हुए न्यायालय को बताया कि अभियुक्त की गिरफ्तारी 12 अगस्त शाम 5 बजे के आसपास सिग्नेचर ग्रीन्स अपार्टमेंट्स, विकास नगर स्थित घर से की गई। 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने आरोपी को पेश नहीं किया गया। साक्ष्य के रूप में सीसीटीवी फुटेज को टाइम स्टैंप सहित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया। तकनीकी खामी को देखते हुए अपर सिविल जज (जूनियर डिवीजन) सप्तम, अखिलेश पटेल ने रिमांड पर सुनवाई के लिए अगले कार्य दिवस की तारीख लगा दी। तीन दिनों के अवकाश के चलते अगले कार्य दिवस 18 अगस्त को सुनवाई के दौरान विवेचक को भी न्यायालय में उपस्थित रहने का आदेश दिया गया।

लिखापढ़ी में फंसी पुलिस बैकफुट पर आई

18 अगस्त को पहले तो पुलिस की तरफ से गिरफ्तारी को जायज बताने की दलीलें दी गईं। लेकिन जब एहसास हुआ कि गिरफ्तारी को लेकर अभियुक्त पक्ष के पास ठोस सबूत हैं तो बात जांच में सहयोग देने पर रिमांड पर बल न देने तक पहुंच गई। अभियुक्त के अधिवक्ता ने भी अपने प्रार्थना पत्र को नाट प्रेस कर दिया। नतीजा पुलिस द्वारा अभियुक्त पुलकित द्विवेदी की न्यायिक अभिरक्षा बढ़ाने की मांग न करने पर अपर सिविल जज (जूनियर डिवीजन) सप्तम, अखिलेश पटेल ने अभियुक्त को बीस हजार का व्यक्तिगत बंध पत्र और जांच में पूर्णतः सहयोग की अंडरटेकिंग दाखिल करने पर रिहाई का आदेश कर दिया। अदालती औपचारिकताएं पूरी करने पर आरोपी पुलकित द्विवेदी की रिहाई भी हो गई।


नाट प्रेस किए गए अभियुक्त के अधिवक्ता के प्रार्थना पत्र की मुख्य बातें

आवेदक की गिरफ्तारी माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विहान कुमार मामले में निर्धारित कानून के पूर्णतः विरुद्ध है, जिसमें निम्नलिखित सिद्धांत निर्धारित किए गए हैं:

1- गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार की जानकारी देने की आवश्यकता एक औपचारिकता नहीं बल्कि एक अनिवार्य संवैधानिक शर्त है।

2- गिरफ्तारी के आधार बताने का तरीका सार्थक होना चाहिए ताकि अनुच्छेद 22(1) में निहित वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति हो सके।

3- यदि गिरफ्तारी के बाद यथाशीघ्र गिरफ्तारी के आधार की जानकारी नहीं दी जाती है, तो यह अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

4- गिरफ्तारी के बाद यथाशीघ्र गिरफ्तारी के आधार की सूचना देने की अपेक्षा का अनुपालन न करने पर गिरफ्तारी अमान्य हो जाती है, तथा गिरफ्तार किया गया व्यक्ति एक क्षण के लिए भी हिरासत में नहीं रह सकता।

5- यदि पुलिस केवल डायरी प्रविष्टि के आधार पर गिरफ्तारी के आधारों के संचार को साबित करना चाहती है, तो ऐसे आधारों को विशेष रूप से डायरी प्रविष्टि या किसी अन्य समकालीन दस्तावेज़ में शामिल किया जाना चाहिए, और उनके संचार से पहले मौजूद होना चाहिए।

6- जब कोई गिरफ्तार व्यक्ति न्यायालय के समक्ष यह दलील देता है कि गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए गए थे, तो अनुच्छेद 22(1) के अनुपालन को साबित करने का भार पुलिस प्राधिकारियों पर होता है।

7- गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार के सदस्यों या रिश्तेदारों को गिरफ्तारी के आधार भी बताए जाने चाहिए ताकि वे यथाशीघ्र उसकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक व्यवस्था कर सकें, अन्यथा गिरफ्तारी को अवैध माना जा सकता है।

कानपुर पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार जहां एक तरफ शहर में संगठित अपराधिक समूहों पर करारा प्रहार कर रहे हैं, अपराधियों के खिलाफ पुख्ता जांच और तकनीक के प्रयोग से ठोस सबूत जुटाकर प्रभावशाली जांच पर जोर दे रहे हैं। अपराधों की विवेचना के वैज्ञानिक अन्वेषण की बात कर रहे हैं, वहीं कानपुर नगर के साईबर क्राइम थाने की कार्यशैली पुलिस की कार्य कुशलता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा रही है। यह लापरवाही एक ऐसे मामले में सामने आई है जिसका खुलासा डीसीपी क्राइम एस एम कासिम आबिदी ने स्वयं किया था और जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साईबर अपराध करने वाले गिरोह के पर्दाफाश का दावा किया गया था। प्रश्न यह भी उठ रहा है कि साईबर अपराध में लिप्त शातिर अपराधियों पर नकेल कसने की जिम्मेदारी उठाने वाला थाना यदि इतनी गैरजिम्मेदाराना तरीके से लिखा पढ़ी करेगा, और उसका लाभ आरोपी को मिलेगा तो साईबर अपराध पर लगाम कैसे लगेगी? एक प्रश्न तो उन अधिकारियों की कार्यशैली पर भी उठना लाजिमी है जिनके पर्यवेक्षण में इस प्रकरण की जांच हो रही है।

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