उत्तरकाशी के धराली गांव में जल प्रलय और उससे जुड़े जलवायु संकट पर आधारित स्वराज इंडिया अखबार की एक गहन विश्लेषणात्मक विशेष रिपोर्ट – जिसमें प्राकृतिक आपदा, मानवीय लापरवाही और जलवायु चेतावनी तीनों के स्वर गूंजते हैं:
स्वराज इंडिया | विशेष रिपोर्ट | उत्तरकाशी
06 अगस्त 2025
24 घंटे बाद भी नहीं पहुंच सकी राहत, टूटी सड़कें, तबाह पुल और खोए इंसानियत के निशान
उत्तरकाशी।
मंगलवार दोपहर करीब 1:30 बजे उत्तरकाशी के धराली गांव में जो हुआ, उसने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि प्रकृति से बड़ा कोई नहीं – न विज्ञान, न तकनीक और न ही विकास के नाम पर बनाई गई हमारी ढांचागत कल्पनाएं। पलक झपकते ही पूरा गांव जलमग्न हो गया। मकान, पेड़, पशु-पक्षी सब मलबे में समा गए। पुल बह गए, सड़कें धंस गईं, रास्ते मिट गए। 24 घंटे बीत चुके हैं, लेकिन अब भी धराली में पर्याप्त राहत नहीं पहुंच सकी है। मौसम इतना बिगड़ा कि हेलीकॉप्टर तक नहीं उतर सके।
जो टीमें मदद लेकर पहुंच रही थीं, उन्होंने रात टूटी सड़कों के किनारे खड़ी गाड़ियों में गुज़ारी। उत्तरकाशी से जिलाधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी जब धराली की ओर निकले, तो रास्ते में नेताला के पास पहाड़ खिसकने से रास्ता बंद हो गया। करीब पांच घंटे बाद रास्ता मिला, लेकिन आगे पापड़ गाड़ क्षेत्र में भी सड़क ही गायब हो गई। अफसरों को देर रात तक वहीं रुकना पड़ा।
यह केवल जल प्रलय नहीं, चेतावनी है!
यह तबाही कोई संयोग नहीं, यह विकास के नाम पर विनाश की पटकथा का दृश्य है।
ऑल वेदर रोड, टनल, फाइव स्टार होटल, रेल लाइनें – यह सब हमने पहाड़ों को काट-काटकर थोपा, बिना यह समझे कि पहाड़ केवल भूगोल नहीं, एक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र हैं।
“पहले लकड़ी और पत्थरों के परंपरागत घर होते थे, अब कंक्रीट और सरिया से मल्टी स्टोरी इमारतें खड़ी हो रही हैं।”
जलवायु परिवर्तन की गूंगी गूंज
20 साल पहले जब मसूरी में एसी की जरूरत महसूस हुई, तब भी चेतावनी थी। आज मसूरी में हर घर में 2–3 एसी होना एक सामाजिक चेतावनी है कि तापमान असामान्य रूप से बढ़ रहा है।
हम क्लाइमेट कॉन्फ्रेंसों में जाते हैं, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टें पढ़ते हैं, लेकिन नीति कागज़ पर रहती है, ज़मीनी बदलाव के नाम पर जंगल कटते हैं और नदियां मरती हैं।
बीते वर्षों से सीखी कोई सीख नहीं
धराली की त्रासदी एक और “केदारनाथ” बनने से पहले की चेतावनी है। लेकिन क्या हम सुनेंगे?
क्या यह तबाही कुछ बदलेगी? या फिर मीडिया कवरेज और सरकारी बयानबाजी के बाद सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट जाएगा?
स्वराज इंडिया का सवाल
- कब तक हम विकास के नाम पर प्रकृति से लड़ते रहेंगे?
- क्या अब भी वक्त नहीं आया कि हम पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण नीति की पुनर्समीक्षा करें?
- क्या सरकार केवल राहत भेज
