Friday, August 22, 2025
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जमीन से पाताल तक की गहराई: आस्था बनाम विज्ञान की दिलचस्प कहानी

पौराणिक नजरिया: जहां नाग और असुरों की दुनिया बसती है

स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो

पाताल—ये शब्द सुनते ही दिमाग में एक रहस्यमयी, गहरी और अनजानी दुनिया की छवि उभरती है। पौराणिक कथाओं से लेकर आधुनिक विज्ञान तक, इस सवाल ने हमेशा मानव कल्पना और जिज्ञासा को उकसाया है—क्या सच में पाताल जैसी कोई जगह है? अगर है, तो जमीन से उसकी गहराई कितनी है?
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, पाताल कोई एक जगह नहीं, बल्कि सात अधोलोकों की श्रृंखला है—अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। इन लोकों को नागों, दानवों और असुरों का निवास माना गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वराह अवतार में पाताल से पृथ्वी को उठाया था।
पुराणों में पाताल की गहराई को हजारों योजन (1 योजन ≈ 12–15 किमी) बताया गया है, लेकिन यह माप एक प्रतीकात्मक अर्थ रखती है—अथाह, अनंत और रहस्यमयी।

विज्ञान की नजर से: 6,371 किलोमीटर का सफर

अगर पाताल को वैज्ञानिक भाषा में समझें, तो यह पृथ्वी के भीतरी भागों को दर्शाता है। वैज्ञानिक रूप से पृथ्वी की संरचना चार परतों में बंटी होती है:

  1. क्रस्ट (पृथ्वी की सतह) – 5 से 70 किमी मोटी
  2. मेंटल – 2,900 किमी गहराई तक फैली गर्म चट्टानों की परत
  3. बाहरी कोर – 2,200 किमी मोटी, तरल अवस्था में
  4. आंतरिक कोर – 1,220 किमी मोटा ठोस हिस्सा

पृथ्वी के केंद्र तक की कुल गहराई करीब 6,371 किमी मानी जाती है।

अब तक की सबसे गहरी खुदाई सिर्फ 12.3 किमी
वैज्ञानिक तौर पर अब तक सबसे गहरी खुदाई रूस के कोला प्रायद्वीप में हुई है, जिसे “कोला सुपरडीप बोरहोल” कहा जाता है। यह खुदाई 12.3 किलोमीटर तक ही संभव हो पाई, जहां तापमान 180 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इसके आगे जाना इंसानी तकनीक के लिए अभी असंभव है।

तो क्या है पाताल?

पौराणिक कथाओं में पाताल आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक दुनिया है, जो डर, रहस्य और चेतना की गहराई को दर्शाती है। वहीं विज्ञान में यह पृथ्वी की परतों और केंद्र तक की माप है। दोनों ही दृष्टिकोण एक साझा बात पर टिके हैं—इंसान की जिज्ञासा।
हम जानना चाहते हैं कि धरती के नीचे क्या है, फिर चाहे वो कहानियों के ज़रिए हो या विज्ञान की खोजों से।
पाताल की गहराई केवल एक भौगोलिक सवाल नहीं, बल्कि एक मानव भावनाओं, आस्था और विज्ञान की जुगलबंदी है।
पुराण कहते हैं—”यह अनंत है”,
विज्ञान कहता है—”अब तक सिर्फ 12.3 किलोमीटर तक पहुंचे हैं”,
पर सवाल वही है, जो हमें हमेशा सोचने पर मजबूर करता है—हम कहां तक जा सकते हैं?

(यह लेख मानव जिज्ञासा और पौराणिक-वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बीच संतुलन बनाकर तैयार किया गया है)

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