
राज्यपाल आरएन रवि के बयान से देश में मचा सियासी भूचाल
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
लखनऊ।
तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि के हालिया बयान ने असम, पश्चिम बंगाल और पूर्वांचल (उत्तर प्रदेश और बिहार के पूर्वी हिस्से) में हो रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। उन्होंने गांधीनगर में राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान इन बदलावों को “टाइम बम” करार देते हुए यह सवाल खड़ा किया कि क्या कोई गारंटी दे सकता है कि अगले 50 वर्षों में इन क्षेत्रों में “राष्ट्र विभाजन” जैसी स्थिति नहीं पैदा होगी?
उनके इस बयान ने राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। एक ओर इसे जनसांख्यिकीय असंतुलन पर जरूरी चेतावनी माना जा रहा है, तो दूसरी ओर आलोचकों ने इसे एक खास विचारधारा को बढ़ावा देने वाला और समाज में अविश्वास फैलाने वाला बयान बताया है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में डेमोग्राफिक बदलाव
असम, पश्चिम बंगाल और पूर्वांचल लंबे समय से जनसंख्या संरचना में बदलाव के साक्षी रहे हैं। असम में 19वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान बंगाल और बाद में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में प्रवासी लाए गए। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद इन प्रवासों में और तेजी आई। पश्चिम बंगाल में भी सीमा पार से आए लोगों और शहरीकरण ने जनसांख्यिकी को बदल दिया।
पूर्वांचल में, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों में, आर्थिक अवसरों की कमी के चलते प्रवासन का दबाव हमेशा बना रहा है। इससे न केवल आबादी का वितरण बदला है, बल्कि सांस्कृतिक और भाषाई विविधता में भी उल्लेखनीय अंतर आया है।

सामाजिक और सांस्कृतिक तनाव की चेतावनी
राज्यपाल रवि ने अपने बयान में संकेत दिया कि जनसांख्यिकीय बदलावों के चलते सामाजिक ताना-बाना कमजोर हो सकता है और इससे क्षेत्रीय या सांप्रदायिक तनाव गहरा सकता है। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से 1947 के विभाजन का हवाला देते हुए यह भी जताया कि अगर इन परिवर्तनों को नजरअंदाज किया गया तो परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।
उनका बयान असम आंदोलन (1979-1985) की भी याद दिलाता है, जो अवैध प्रवास के खिलाफ शुरू हुआ था। आज भी असमिया पहचान की रक्षा के लिए कई संगठन सक्रिय हैं। पश्चिम बंगाल में बंगाली संस्कृति और भाषा को लेकर चिंताएं समय-समय पर सामने आती रही हैं। पूर्वांचल में भी बाहरी प्रवासियों को लेकर सामाजिक और सांस्कृतिक टकराव के मामले सामने आए हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और विवाद
राज्यपाल के बयान को विपक्षी दलों ने तत्काल राजनीतिक रंग दे दिया है। कुछ नेताओं ने इसे केंद्र की “वन नेशन, वन कल्चर” नीति से जोड़ते हुए इसे संघीय ढांचे पर प्रहार बताया। खासकर तमिलनाडु में, जहां द्रविड़ राजनीति और क्षेत्रीय अस्मिता की गहरी जड़ें हैं, वहां यह बयान और विवादास्पद माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे बयान सामाजिक सौहार्द को प्रभावित कर सकते हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां पहले से ही सांप्रदायिक तनाव मौजूद है।
नीति और भविष्य की चुनौतियाँ
डेमोग्राफिक बदलावों का मुद्दा केवल सांख्यिकी नहीं, बल्कि यह आर्थिक अवसर, शिक्षा, संसाधनों की उपलब्धता और सामाजिक समावेश से भी जुड़ा हुआ है। असम में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) लागू करने की कोशिश की गई, लेकिन उसके कार्यान्वयन में भारी चुनौतियां सामने आईं। पश्चिम बंगाल में प्रवास और नागरिकता से जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक दलों के बीच खींचतान लगातार चलती रही है।
राज्यपाल की यह चेतावनी गंभीरता से लेने की आवश्यकता ?
राज्यपाल की यह चेतावनी कि 50 वर्षों में विभाजन जैसी स्थिति हो सकती है, गंभीर जरूर है, लेकिन इसका समाधान डर या आरोप में नहीं, बल्कि संतुलित और समावेशी नीति में है। विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और समान अवसर जैसी नीतियों से इन समस्याओं को बेहतर ढंग से सुलझाया जा सकता है।
राज्यपाल आर.एन. रवि का बयान देश के लिए एक चेतावनी है, जिसे केवल राजनीतिक लेंस से देखने की बजाय जननीति और सामाजिक समरसता के संदर्भ में समझने की जरूरत है। भारत की विविधता उसकी ताकत है, न कि कमजोरी। इसलिए आवश्यक है कि जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को ‘टाइम बम’ नहीं, बल्कि एक प्रबंधन योग्य वास्तविकता के रूप में देखा जाए—जिसके लिए जरूरी है संवाद, समावेश और दूरदर्शिता।