
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
लखनऊ।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पाकिस्तान को लेकर बढ़ती नरमी और भारत के खिलाफ तीखे रुख ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई कूटनीतिक बहस छेड़ दी है। ट्रंप द्वारा भारत पर दबाव बनाने की कोशिशें और पाकिस्तान के साथ करीबी रिश्तों को बढ़ावा देना, अब विशेषज्ञों की नजर में भारत को ‘सबक सिखाने’ की रणनीति बन चुकी थी। हालांकि, भारत ने इन परिस्थितियों में जिस परिपक्वता और रणनीतिक संतुलन का प्रदर्शन किया, उसने साफ कर दिया कि नई दिल्ली किसी भी वैश्विक दबाव में झुकने को तैयार नहीं।
ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत भारत को “महान दोस्त” बताकर की थी, लेकिन जल्दी ही उनका रुख बदल गया। उन्होंने भारत के रूस से हथियार और तेल खरीदने पर सार्वजनिक आपत्ति जताई और भारत-पाकिस्तान के बीच एकतरफा संघर्षविराम की घोषणा कर दी—जो कूटनीतिक दृष्टि से चौंकाने वाली बात थी।
यही नहीं, ट्रंप ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस बुलाकर न केवल सैन्य सहयोग पर चर्चा की, बल्कि पाकिस्तान के साथ तेल और क्रिप्टो व्यापार जैसे क्षेत्रों में बड़े समझौते की घोषणा कर दी। इसके बाद उनका बयान कि “एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेचेगा,” भारत की विदेश नीति और आत्मनिर्भरता पर सीधा हमला माना गया।
भारत की सख्त प्रतिक्रिया
ट्रंप की इन गतिविधियों पर भारत ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी प्रकार की बातचीत पूरी तरह द्विपक्षीय होगी, और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उल्लेख करते हुए कहा कि संघर्षविराम भारत की स्वतंत्र सैन्य और कूटनीतिक नीति का हिस्सा है, न कि किसी अमेरिकी दबाव का नतीजा।
ट्रंप प्रशासन ने भारत की छह कंपनियों पर ईरान से व्यापार के चलते प्रतिबंध लगाए और रणनीतिक चाबहार पोर्ट परियोजना की समीक्षा की बात कही। इसके साथ ही पाकिस्तान को एफ-16 विमानों के रखरखाव के लिए 40 करोड़ डॉलर की सहायता और आतंकवाद निरोध में भूमिका की सराहना भारत को अलग-थलग करने की नीति का हिस्सा मानी गई।
रणनीतिक मोर्चे पर भारत का जवाब
भारत ने इस चुनौती का सामना बेहद सोच-समझकर किया। रूस के साथ S-400 मिसाइल डील को तेज किया गया और फ्रांस के साथ राफेल समझौते को अंतिम रूप दिया गया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ब्रिक्स और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति को मजबूती से रखा।
भारत ने अमेरिका के टैरिफ हमले का जवाब ‘आत्मनिर्भर भारत’ के ज़रिए दिया। वाणिज्य मंत्रालय ने टेक्सटाइल, फार्मा और स्टील जैसे क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की दिशा में ठोस कदम उठाए। जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से व्यापार समझौतों की दिशा में प्रगति की गई।
कश्मीर और संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थिति
कश्मीर मुद्दे पर ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश को भारत ने स्पष्ट शब्दों में ठुकरा दिया। संयुक्त राष्ट्र समेत वैश्विक मंचों पर भारत ने दोहराया कि यह मुद्दा पूरी तरह द्विपक्षीय है। भारतीय राजनयिकों ने दुनिया को यह समझाने में सफलता पाई कि भारत, क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक नियमों का सम्मान करने वाला राष्ट्र है। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का पाकिस्तान प्रेम अमेरिका के लिए भी दीर्घकालिक खतरा बन सकता था। पाकिस्तान की डांवाडोल अर्थव्यवस्था और सीमित वैश्विक प्रभाव के मुकाबले भारत की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत कहीं अधिक स्थायी और भरोसेमंद साझेदार सिद्ध हो सकती थी। ट्रंप की भारत-विरोधी नीति अल्पकालिक लाभ के लिए दीर्घकालिक रणनीतिक संबंधों को खतरे में डालने वाली थी।
सबक देने चले थे, सबक सीख गए
ट्रंप भले ही भारत को दबाव में लाने की नीति अपनाकर कोई भू-राजनीतिक बढ़त लेना चाहते थे, लेकिन भारत ने इस अवसर को आत्मनिर्भरता, रणनीतिक साझेदारी और वैश्विक नेतृत्व के अवसर में बदल दिया। भारत ने न केवल खुद को इन परिस्थितियों में संभाला, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए एक और मजबूत स्थान सुनिश्चित किया।
आज जब दुनिया बहुपक्षीय कूटनीति की ओर बढ़ रही है, तब भारत की यह रणनीति—दृढ़, संतुलित और दूरदर्शी—एक मिसाल बनकर उभरी है। ट्रंप का भारत को सबक सिखाने का सपना शायद भारत की ओर से ही उनके लिए एक सबक बन गया।