Friday, August 22, 2025
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शिवशंकर और शिवलिंग में क्या है बड़ा अंतर…

(पवित्र सावन माह पर विशेष लेख)

स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो। एक वैचारिक तथ्य है कि नर्मदा के हर कंकर को शंकर कहते हैं शिव नहीं। तो क्या शिव और शंकर में भेद है औऱ यदि है तो शिव कौन है? शास्त्रों में वर्णित व्याख्या कहती है कि-
शिव समस्त ब्रम्हांड हैं शिव वह चेतना है जहाँ से सब कुछ आरम्भ होता है जहाँ सबका पोषण होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है क्योंकि पूरी सृष्टि ही शिव में विद्यमान है कुछ भी शिव से बाहर नहीं है यहाँ तक मन औऱ शरीर तक शिवतत्व से ही बना हुआ है इसलिए शिव को विश्वरूप भी कहते हैं। शिव शाश्वत है, शिव समाधि है क्योंकि शिव चेतना की जागृत, निद्रा और स्वप्न अवस्था से परे हैं।” शिव पुराण “के अनुसार देव,दनुज,ऋषि, महर्षि,मुनींद्र,सिद्ध,गन्दर्भ ही नहीं अपितु ब्रह्मा विष्णु भी शिव की उपासना करते हैं शिव पंच देवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर हैं।
शिव शून्य भी है इस सृष्टि में सब कुछ शून्यता से आता है और वापस शून्य में ही चला जाता है ये आधुनिक विज्ञान की व्याख्या है ठीक इसी तरह सब कुछ शिव से आता है फिर शिव में ही चला जाता है । शिव ही समस्त जगत की सीमा है शिव अनादि अनन्त है।शिव सभी विपरीत मूल्यों में उपस्थित हैं इसलिए उन्हें रुद्र कहते हैं।जो कि ज्योति बिंदु स्वरूप है और जो शंकर में प्रवेश करके समस्त कल्याणकारी कार्य करवाते है अर्थात शिव कल्याण हैं शिव तत्व है,शिव सत्य है तथा ,शिव आनंद है। शिव स्वयंभू हैं और शाश्वत सर्वोच्च सत्ता है।

शिवलिंग क्या है?

शिवलिंग अनन्त शिव की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु शिवस्वरूप ज्योति का आदि औऱ अंत नहीं खोज पाए तो प्रतीकात्मक रूप में शिवलिंग अस्तित्व में आया शिवलिंग भगवान शिव की निराकार सर्वव्यापी वास्तविकता का प्रतीक है शिवलिंग शिव की रचनात्मक और विनाशकारी दोनों ही शक्तियों का प्रतीक है ये सृजन ज्योत है अर्थात शिवलिंग परमपुरुष शिव का प्रकृति के साथ समन्वित चिन्ह है। शिवपुराण में शिवलिंग की उत्पत्ति का वर्णन अग्नि स्तम्भ के रूप में किया गया गया है जो अनादि व अनन्त है।
लिंगपुराण के अनुसार शिवलिंग निराकार ब्रह्मांड वाहक है। ऊपरीअंडाकार हिस्सा ब्रह्मांड का प्रतीक है और निचला हिस्सा पीठम है जो ब्रह्मांड को पोषण व सहारा देने वाली सर्वोच्च शक्ति है। वेदानुसार शिवलिंग ज्योतिलिंग यानि व्यापक ब्रह्मात्मलिंग है जिसका अर्थ होता है व्यापक प्रकाश।
या कहें शिवलिंग पूर्ण ऊर्जास्त्रोत है विज्ञान और धर्म की समन्वित व्याख्या के आधार पर न्यूक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थान पर सबसे ज्यादा रेडियेशन पाया जाता है अर्थात शिवलिंग न्यूक्लियर रिएक्टर्स हैं इसीलिए उनका जलाभिषेक होता है ताकि वे शांत रहें , हमारे भाभा एटामिक न्यूक्लियर रिएक्टर्स की संरचना ठीक शिवलिंग जैसी ही है।
महादेव के सभी प्रिय प्रदार्थ जैसे विल्बपत्र,गुड़हल,धतूरा इत्यादि सभी न्यूक्लियर एनर्जी को सोखने वाले पदार्थ हैं तभी वे शिवलिंग पर अर्पित किए जाते हैं। इसी तरह शिवलिंग पर चढ़ाया जल रिएक्टिव हो जाता है इसलिए उसे लांघा नहीं जाता। और यही जल जब किसी नदी में मिल जाता है तब वह औषधि का रूप ले लेता है। निश्चित ही शिवलिंग ब्रह्मांडीय ऊर्जा के आधार हैं..

शिव और शिवलिंग के रहस्य को समझने के बाद एक प्रश्न और भी है कि शंकर कौन हैं?

पुराणों के आधार पर भगवान शंकर शिव का साकार रूप है शिव ही शंकर में प्रवेश करके ऐसे सभी महानतम कार्य करवाते हैं जो कोई नहीं कर सकता अर्थात शंकर एक निर्माणकर्ता,नियंत्रणकर्ता,संचालनकर्ता व रचनाकार हैं।जो आदि सिद्ध योगी महातपस्वी रूप में आनन्ददाता,जीवनदाता, एक आचार्य एक अवधूत के रूप में हर युग में में विधमान शाश्वत सत्य मूर्ति है।। शिव रचयिता है और शंकर उनकी रचना।
शिव ब्रह्मलोक में परमधाम के निवासी है और शंकर सूक्ष्म लोक में रहने वाले हैं। शंकर तपस्वी रूप में साकारी देव हैं जो सृष्टि के विलय के कार्य का भार वहन करते हैं। शंकर ही महेश हैं जो देवी पार्वती के पति हैं। शिव औऱ शंकर में उतना ही अंतर है जितना एक मूर्ति और उसके मूर्तिकार में चूंकि शंकर शिव की रचना है इसलिए उन्हें अपने प्रतिनिधित्व में शिव का ध्यान करते हुए देखा जाता है अपने तपस्वी स्वभाव के कारण त्रिदेवों में शंकर ही शिव के अति निकट है।
शिव, शंकर और शिवलिंग तीनों का बहुत गहरा सम्बन्ध आदिशक्ति पराशक्ति माँ नर्मदा से है। इस पूरे ब्रह्मांड में सिर्फ एक माँ नर्मदा का द्वार ही है जहां शिव, शंकर व शिवलिंग तीनों एक साथ विधमान रहते हैं। माँ नर्मदा ही वह परम् शक्ति है जिसका प्राकट्य शिव की देह से हुआ और आदि अनादि काल से नर्मदा परमब्रह्म के संयुक्त विग्रह शिवलिंग (नर्मदेश्वर )का अनवरतनिर्माण कर रही है। माँ नर्मदा के तट औऱ पथ पर चलने वालों को शंकर सहज रूप में मिलते हैं। सत्य ,तत्व,ब्रह्म और सद्गुरु के रूप। अतः शिव से प्रकट हुई नर्मदा शिवलिंग की निर्माणकर्ता है और उसका तट औऱ पथ शंकर का आसन है।इसलिए नर्मदा ही शाश्वत सत्य है जिसके दर्शन मात्र से शिव शंकर और शिवलिंग का सानिध्य प्राप्त होता है।

(दादागुरु से प्राप्त गूढ़ विचार भाव को संकलित करने का प्रयास।)

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