
–द्वापर युग में आज के ही दिन मथुरा के कारागार में हुआ था भगवान श्रीविष्णु का श्रीकृष्ण अवतार
–पूरे देश में जन्माष्टमी की मची
धूम
–गांव से लेकर नगर नगर हो रहे भव्य धार्मिक आयोजन
मुख्य संवाददाता, स्वराज इंडिया
मथुरा/वृंदावन।
दुष्ट कंस और तमाम पापाचारियों के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए द्वापर युग में भगवान श्री विष्णु ने 8वें अवतार में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। वेद स्मृतियों के अनुसार 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के जब 7 मुहर्त निकल गए और 8वां उपस्थित हुआ तभी रात्रि के समय शुभ लग्न में देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण अवतरित हुए। श्रीकृष्ण जन्म भूमि मथुरा में इस साल 5 हजार 251वां जन्मोत्सव में मनाया जा रहा है। मथुरा नगरी सहित वृंदावन और पूरे देश में जन्माष्टमी की धूम है।
माना जाता है कि मथुरा-वृंदावन नगरी में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न स्वरूपों के करीब 5 हजार से अधिक बडे और छोटे मंदिर हैं। जन्माष्टमी पर्व के आयोजन को देखने के लिए मथुरा पूरे देश और विदेश से श्रऋालु पहुंच गए हैं। मथुरा जाने वाली सभी टे्रनें फुल हैं। हाल यह हैं कि वहां के अधिकतर होटल, आश्रम, गेस्ट हाउस धर्मशालाओं में रूम नहीं मिल रहे हैं। मथुरा के विभिन्न चैराहा, रास्तों को लाइटों और झालरों से सजाया गया है। सुरक्षा के दृष्टिगत कई रूटों पर टे्रफिक डायवर्ट किया गया है और पुलिस कर्मियों की अतिरक्ति डयूटियां लगाई हैं। जन्मभूमि परिसर में विगत वर्षो की तरह से शनिवार से रासलीला का आयोजन चल रहा है। यह रासलीला 10 दिनों तक अनवरत चलती है। इसके लिए बडे पैमाने पर इंतजाम किए गए हैं। जन्माष्टमी महोत्सव पर्व का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मथुरा के हर घर में जश्न जैसा माहौल है। लोगों ने इसकी विधिवत तैयारियां की।

वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर में प्रवेश पर रोक
जन्माष्टमी से पहले ही लगातार बढ रही श्रद्धाुलओं की भीड नियंत्रित करने के लिए वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। श्रद्धाुलओं की भीड के चलते वृंदावन की गलियां राधे-राधे पुकार रही हैं। प्रसिद्ध कृपालु जी आश्रम में शाम के समय वहां जाने वाले मार्ग बंद से हो जाते हैं। इसी तरह से इस्कान मंदिर, रंगजी मंदिर, पागल बाबा मंदिर सहित बिरला मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता है। वृंदावन में श्रद्धाुलओं की बढती भीड को लेकर जिला प्रशासन एलट मोड पर है। बांके बिहारी मंदिर में भीड के चलते कई हादसे हो चुके हैं।

कान्हा की वंशी पर नाच रही दुनियां
भारतीय सनानत संस्कृति परंपरा में श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतना विशाल है कि उन्हे पूर्णाअवतार कहा जाता है। श्रीराम की तरह श्रीकृष्ण विभिन्न स्वरूपों में सहस्त्रों वर्षों से भारतीय जनमानस में निरंतर विद्यमान हैं। श्रीकृष्ण वास्तव में भारत की लोक चेतना के सहज स्वर हैं। वे मानवीय शक्तियों के साथ साथ दुर्बलताओं को सुमगता से स्वीकार की प्रतिबद्धता से संयुक्त हैं। वे अनन्य भक्ति से ओतप्रेत व्यक्ति के योग क्षेम को वहन करने को तत्पर हैैं। वे ज्ञानयोग के मर्मज्ञ हैं। अगर आज देश दुनियां की युवा पीढी श्रीकृष्ण भक्ति में लीन नजर आ रही है। इससे स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण अपने संपूर्ण चरित्र में स्वाभाविक, मानवीय अपनत्व से परिपूर्ण दिखते हैं। वे अनवरत रूप से मुस्कराते हुए अपने निश्चयों पर दृढ दिखाई देते हैं। वे शाप मिलने पर भी स्थिरमना बने रहते हैं। इसी वजह से श्रीकृष्ण की करोडों श्रद्धाुलओं में अमिट छाप है।