
–कानपुर में छिडे प्रशासनिक संग्राम के बीच पक्ष और विपक्ष का माहौल बना दिया गया
–बीजेपी नेता आधे धडों में बंटे दिख रहे हैं
-सीएमओ के पक्ष में कुछ विधायकों ने पत्र भेजे तो जनता डीएम के साथ खडी है
प्रमुख संवाददाता, स्वराज इंडिया
कानपुर।
महानगर कानपुर में डीएम बनाम सीएमओ के विवाद में जनप्रतिनिधियों के कूदने से मामला और गहरा गया है। कई बीजेपी विधायकों ने सीएमओ का पक्ष लेकर शासन को पत्र भेजे हैं तो वहीं डीएम के साथ जनता खडी नजर आ रही है। वहीं, किदवईनगर से विधायक महेश त्रिवेदी और बिठूर से विधायक अभिजीत सिंह सांगा ने डीएम के कार्यो की तारीफ करते हुए पत्र मुख्यमंत्री को भेजा है। वहीं, अबतक इस प्रकरण में शासन चुप्पी साधे हुए हैं, स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक का भी कोई रिएक्शन नहीं आया है। इससे प्रशासनिक माहौल और खराब होता जा रहा है।
डीएम और सीएमओ प्रकरण सोशल मीडिया में छाया हुआ है। अधिकतर जनता डीएम के पक्ष में खडी नजर आ रही है, कई सोशल मीडिया यूजरों का कहना है कि अरसे बाद कानपुर को अच्छा और लोकप्रिय डीएम मिला है। डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह ने जनसुनवाई में बेहतर कार्य किया। स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देते हुए लगातार चाबुक चलाया तो हडकंप मचा। हकीकत यह है कि जिले के सीएचएसी और पीएचसी रेफर सेंटर बनकर रह गए हैं। कई जगह तो डॉक्टर नहीं मिलते हैं अगर मिल भी गए तो सही उपचार नहीं मिलता है। वहीं, शहर में निजी अस्पतालों की भरमार है, जिनके पास न तो प्रशिक्षित कर्मी हैं और न ही अन्य सुरक्षा के कोई ठोस इंतजाम। अल्टीमेटली स्वास्थ्य विभाग के मुखिया सीएमओ डा0 हरिदत्त नेमी पर सवाल उठ लाजिमी हैं, डीएम ने शासन को पत्र लिखा तो जनप्रतिनिधियों का सुरक्षा कवच लेकर सीएमओ अपने को पाक साफ बताने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, सीएमओ का आरोप है कि एक दागी ठेकेदार का पेमेंट करवाने का दबाव डीएम की ओर डाला जा रहा था, इसलिए मुझे बदनाम किया गया। हालांकि, सीएमओ का तर्क गले नहीं उतरता है क्यों कि एक वायरल ऑडियो क्लिप में डीएम के लिए कहे गए आपत्तिजनक शब्द इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सीएमओ की भडास कुछ और ही है।

अभिभावक महासंघ ने डीएम के लिए जारी किया पत्र
अखिल भारतीय अभिभावक संघ के अध्यक्ष राकेश मिश्रा निडर ने मुख्यमंत्री उप्र के नाम जारी किए पत्र में कहा कि डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह ईमानदार और साफ सुथरी छवि के अधिकारी हैं। तैनाती के बाद से ही उन्होने सरकारी महकमों को सुधारने के लिए ताबडतोड एक्शन लिए। जनसुनवाई में आने वालों को त्वरित न्याय दिलाने का काम कर रहे हैं। कुछ लोग पूर्वनियोजित ढंग से जितेंद्र प्रताप सिंह का यहां से हटाना चाह रहे हैं। पत्र में आगे लिखा है कि दुखद यह है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता महाना, अरूण पाठक, मैथानी सीएमओ का सहयोग कर रहे हैं, इसमें कहीं न कहीं कुछ दाल में काला है। क्यों कि जिस तरह से दक्षिण शहर में अबतक अस्पताल चालू नहीं हो सका और नेताओं ने इसपर कोई पहल नहीं की। यह भी बडी बात है।
नेमी ठेकेदारों से मांगते थे मोटा कमीशन !
सूत्रों का दावा है कि सीएमओ डा. हरिदत्त नेमी सिंडीकेट के आदमी हैं। यूपी में सरकारें बदली लेकिन राज्य के 36 जिले सिंडीकेट के इशारे पर आज भी चलते हैं। इसमें एक पूर्व विधायक मुकेश श्रीवास्तव का नाम भी लिया जाता है कि वह किस तरह से स्वास्थ्य के बडे बडे ठेकों और सप्लाई के टेंडर जेम पोर्टल से अपने ठेकेदारों को दिलवाते देते हैं। यह स्वास्थ्य विभाग के टॉप अफसरों में भी जगजाहिर है। दावा यहां तक है कि लखनउ में बैठे एक बडे अफसर भी बैक डोर से सिंडीकेट को बैकअप देते रहते हैं, इसी वजह से नेमी जैसे स्वास्थ्य अधिकारी डीएम से मोर्चा खोलने की ताकत रखते हैं। हालांकि देखना यह है कि इस प्रकरण का अंजाम क्या होता है। ’स्वराज इंडिया’ जल्द ही कुछ ठेकेदारों के मामलों का खुलासा करेगा जिसमें सीएमओ को कमीशन नहीं देने के कारण पेमेंट रोके गए हैं और शिकायतों को नजरअंदाज किया गया।
सपा विधायक ने कहा, यह लड़ाई सीएमओ और डीएम के बीच की नहीं
कानपुर से सपा के वरिष्ठ विधायक अमिताभ बाजपेई का भी बयान सामने आया है । उन्होंने कहा कि कानपुर में चल रही प्रशासनिक लड़ाई डीएम और सीएमओ के बीच की नहीं है, इसमें बड़े स्तर का खेल है। यह कहीं ना कहीं सरकार में चल रहे भ्रष्टाचार को उजागर करता है, लखनऊ स्तर की बात करें तो यह लड़ाई मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम के बीच की है जो जिसके पाले में है उसी हिसाब से पत्र जारी कर रहा है। कानपुर की जनता अपने आप को ठगा सा महसूस कर रही है।
भाजपा नेताओं की चल रही गुटबाजी भी उजागर
सीएमओ का चिट्ठी वाला दांव पड़ा उल्टा, सीएमओ के विरोध में दो विधायकों ने सीधे मुख्यमंत्री को लिखी चिट्ठी
सीएमओ का आचरण सेवा नियमावली का उल्लंघन भी है
सीएमओ प्रकरण से एक बार फिर उजागर हुई भाजपा में गुटबाजी की लाइलाज बीमारी
निर्मल तिवारी / स्वराज इंडिया
कानपुर।
ऐसा लग रहा है जिलाधिकारी कानपुर नगर द्वारा लगातार कसी जा रही नकेल से आजिज सीएमओ कानपुर नगर ने कई जगह अपना दुखड़ा रोया। जिसके दो परिणाम सामने आए। दुखड़ा सुन रहे कुछ चतुर सुजानों ने जहां उनका आडियो वायरल कर दिया वहीं कुछ माननीय उनका दुखड़ा सुन पसीज गए और सीएमओ साहब के पक्ष में चिट्ठी लिख दी। सबसे पहले विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना की चिट्ठी सामने आई। उसके बाद एमएलसी अरुण पाठक और गोविंद नगर विधायक सुरेंद्र मैथानी की सीएमओ के पक्ष में शासन को लिखित चिट्ठी चर्चा का विषय रही। आम कनपुरियों के बीच जब सीएमओ के राजनीतिक सपोर्ट की चर्चा चल रही थी, उसी बीच शाम होते-होते बिठूर विधायक अभिजीत सिंह सांगा की सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखित चिट्ठी सामने आ गई। जिसमें माननीय विधायक ने सीएमओ के भ्रष्टाचार की पोल खोल कर रख दी। इतना ही नहीं देर रात तक किदवई नगर विधायक महेश त्रिवेदी की सीएम को लिखित चिट्ठी मीडिया जगत में वायरल हो गई जिसका लब्बोलुआब सीएमओ साहब के आचरण की जांच की संस्तुति जैसा है। अब शहर में आम हो या खास सबके बीच चर्चा का एक ही विषय है कि ऐसा क्या कारण है कि कानपुर के कुछ माननीय की निगाह में सीएमओ बहुत अच्छे हैं वहीं कुछ की निगाह में सीएमओ का आचरण बहुत ही खराब है।
विशुद्ध प्रशासनिक मामले में राजनीतिज्ञों का क्या काम
विषय ऐसा है नहीं कि राजनीति या राजनीतिज्ञ की एंट्री नजर आए। मामला खालिस प्रशासनिक व्यवस्था का है। जिलाधीश, जो जिले का मुखिया है, नागरिक प्रशासन का कप्तान है, लीडर है, वह सरकार और शासन की मंशानुरूप व्यवस्थाओं के सुचारू संचालन हेतु पर्यवेक्षण कर रहा है व औचक निरीक्षण कर रहा है। कहा जा सकता है व्यवस्थाओं को चाक चौबंद करने के लिए प्रयत्नशील है। ऐसा जिलाधिकारी जिसकी कार्यशैली से जनता बहुत खुश है, जो आमजन मे ये आस बांध रहा है कि सरकार को सब की चिंता है और सरकार सब की बेहतरी के लिए कार्य कर रही है। सबसे बड़ी बात है जिलाधिकारी की कार्यशैली, जो संदेश देती है कि इस सरकार की नीति भ्रष्टाचार कदाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की है। ऐसे जिलाधिकारी के जिले के सत्ता पक्ष के जन प्रतिनिधियों को तो उनके इस व्यवहार से अनुग्रहीत होना चाहिए, जिलाधिकारी से प्रसन्न रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर ऐसे अधिकारी का संबल बनना चाहिए। लेकिन कानपुर में राजनीति की गंगा उल्टी बह रही है। वैसे भी कानपुर की बात ही निराली है और उससे भी ज्यादा निराले हैं कानपुर के सत्ता पक्ष के कुछ जनप्रतिनिधि जिन्होंने कानपुर की शिक्षा स्वास्थ्य व अन्य बेपटरी नागरिक व्यवस्थाओं को पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह के विरुद्ध ही ऐसा मोर्चा सा खोल दिया है। कानपुर की जनता जनार्दन कह रही है नेताजी अपने तो कमाल कर दिया। आप तो जानते ही हैं बात जब कानपुर की होती है तो तमाम विशेषताओं से पहले जिक्र आता है ठग्गू के लड्डू का और आजकल कनपुरिए सीएमओ प्रकरण पर अपने माननीयों के लिए यही पंक्ति दोहराते नजर आ रहे हैं ऐसा कोई सगा नहीं जिसे हमने ठगा नहीं।
कानपुर के जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह को कानपुर का चार्ज संभाले अभी 5 महीने ही हुए हैं। इन पांच महीनों में उनकी कार्यशैली ने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में खलबली मचा दी है ।शिक्षा क्षेत्र के महारथी तो मौन हैं लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़े महारथियों को ऐसा प्रतीत हो रहा है ज्यादा ही चोट पहुंची है। जाने अनजाने में सत्ता पक्ष के कुछ माननीय भी इन चैटिल लोगों के हमदर्द बने नजर आ रहे हैं ।
सीएमओ के पेंच कसे गए तो सामने आए हमदर्द
कानपुर जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह की कार्यशैली कुछ ऐसी है कि लगातार वह विभिन्न विभागों, कार्यालयों का निरीक्षण करते रहते हैं। अधिकांशतः यह निरीक्षण औचक होते हैं। बिना बताए होने वाले इन निरीक्षणों से अक्सर ही नागरिक प्रशासन की पोल खुलती रहती है। स्वास्थ्य महकमा भी इससे अछूता नहीं है। सरकार और शासन के अव्वल वरीयता वाले इस विभाग में डीएम कानपुर नगर के हर बार निरीक्षण में कमियां सामने आईं। जिससे यह संदेश निकला कि यह विभाग अपनी लकीर पर ही चलता है। निरीक्षण लिखा-पढ़ी आदि का इस पर कोई विशेष फर्क पड़ता नहीं है।
18 जनवरी को जिलाधिकारी के रूप में कार्यभार संभालने के अगले दिन ही डीएम साहब नवाबगंज पीएचसी का औचक निरीक्षण करते हैं जहां डॉक्टर सहित आठ अन्य लोग उन्हें नदारत मिलते हैं। तब से अब तक 8 से 9 मौकों पर डीएम कानपुर नगर ने विभिन्न सीएचसी, पीएचसी, अस्पतालों और कार्यालय का निरीक्षण किया और हर बार अनियमितताएं पकड़ीं। हद तो तब हो गई जब 4 फरवरी को सीएमओ कानपुर नगर के कार्यालय का डीएम द्वारा निरीक्षण किया गया। इस निरीक्षण में सीएमओ सहित 34 कर्मचारी कार्यालय से अनुपस्थित मिले।
सीएमओ की कार्यकुशलता और कर्त्तव्यपरायणता के उदाहरण!
भाजपा के माननीय जिन्हें कार्य कुशल बता रहे हैं वह सीएमओ कानपुर नगर डॉक्टर हरिदत्त नेमी औचक निरीक्षण के समय कार्यालय से बिना किसी कारण अनुपस्थित थे। इतना ही नहीं जब 4 मार्च को जिला अस्पताल उर्सला का डीएम स ने औचक निरीक्षण किया तो वहां पर भी अनियमितताएं मिलीं और शासन द्वारा निर्देशित किए जाने के बाद भी यही कार्य कुशल, जनता के हमदर्द सीएमओ साहब ओपीडी में मरीज नहीं देख रहे थे और ना ही इनके प्रशासनिक मातहत चिकित्सक ओपीडी में मरीज देख रहे थे। भाजपा के कई माननीय जिन सीएमओ की कार्यशैली और कर्तव्यनिष्ठा से बहुत अधिक खुश हैं उन्हीं सीएमओ कानपुर नगर की नाक के नीचे कांशीराम अस्पताल में पिछले महीने की 25 तारीख को जब डीएम कानपुर नगर पहुंचे तो 64 कर्मचारी गायब मिले। बिरहाना रोड केपीएम की डॉक्टर दीप्ति तो याद ही होंगी जो रजिस्टर में एक दो नहीं 25 फर्जी मरीजों का नाम लिखकर उनका इलाज कर रही थीं और उन्हें मुफ्त दवा भी दे रही थीं।आश्चर्य की बात है कानपुर की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में इतना अधिक गड़बड़झाला सामने आने के बाद भी कुछ माननीय सीएमओ के पक्ष में चिट्ठी लिख रहे हैं, उन्हें कर्तव्यपरायण और कार्य कुशल बता रहे हैं।
कुल मिलाकर सीएमओ कानपुर नगर के लिए कानपुर का यह कार्यकाल उनकी सर्विस का सबसे बुरा दौर साबित होने जा रहा है। कहा जाता है सोशल मीडिया का उपयोग दोधारी तलवार की तरह होता है। यदि आपसे जरा सी चूक हुई तो आप खुद भी चोटिल हो सकते हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है डीएम कानपुर नगर सोशल मीडिया के सिद्धहस्त हैं। वो इस प्लेटफार्म का अच्छे से उपयोग करना जानते हैं। लगभग सभी निरीक्षण के बाद वह आउटपुट्स को सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं। शायद इसी से प्रेरित होकर सीएमओ साहब ने भी अपनी बात सोशल मीडिया पर रखने का प्रयास किया। जिसमें सिफारिशी चिट्ठियों को वायरल करना भी शामिल है। लेकिन ऐसा लग रहा है सीएमओ साहब इसमें बुरी तरह गच्चा खा गए।जिसका सबसे बड़ा कारण आम जनमानस को उनके स्वास्थ्य विभाग और सेवाओं से नकारात्मक अनुभव मिलना है। वहीं डीएम कानपुर नगर को कनपुरिए हीरो की नजर से देख रहे हैं। कुछ माननीयों ने भले ही कतिपय कारणों से सीएमओ कानपुर नगर के पक्ष में चिट्ठी लिख दी हो लेकिन जनता जनार्दन डीएम के पक्ष में है। इसके साक्षात प्रमाण सोशल मीडिया पर डीएम के पक्ष में चल रहे कैम्पेन के रूप में उपलब्ध हैं।
